बाइबिल क्या है? Bible ka महत्व, इतिहास What is Bible? Importance & History in Hindi

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बाइबिल क्या है? Bible ka महत्व, इतिहास What is Bible? Importance & History in Hindi
बाइबिल क्या है? Bible ka महत्व, इतिहास What is Bible? Importance & History in Hindi

आज हम जिस किताब की बात करने वाले हैं बाइबिल (अथवा बाइबल, Bible, अर्थात “किताब”) ईसाई धर्म(मसीही धर्म) की आधारशिला है और Baibil  ईसाइयों (मसीहियों) का पवित्रतम ( pak )Kitab hai व्हाय विल अल्लाह की तरफ से भेजी गई किताब है जो ईसा अलैहिस्सलाम पर उतारी गई थी अल्लाह की तरफ से चार किताबें भेजी गई है जिनके नाम यह है बाइबल कुरान Toreat, और इंजील यह चारों आसमानी किताबें हैं जो हर doar के नबी पर अल्लाह की तरफ से उतारी गई थी आज हम बाइबल के बारे में बात करेंग.

बाइबिल क्या है?

Allah की तरफ से भेजी गई हर किताब पाक और साफ है और उसमें अल्लाह का कलाम शामिल है बाइबल भी अल्लाह की ही किताब है जो ईसा अलैहिस्सलाम के ऊपर अल्लाह की जानिब से उतारी गई थी ईसाई धर्म के सभी लोग बाय बिल को मानते हैं और बाइबल को पढ़ते हैं बाइबल ईसाईयों का पवित्र ग्रंथ है। सभी ईसाई इसे पढ़ते हैं और इसकी पूजा करते हैं। इसके दो भाग हैं : पूर्वविधान (ओल्ड टेस्टामैंट) और नवविधान (न्यू टेस्टामेंट) बाइबिल का आधा भाग यहूदियों का भी धर्म ग्रंथ है।

ऐसा माना जाता है कि ईश्वर की प्रेरणा से मनुष्य ने बाइबल को लिखा था। इसमें ईसा मसीह के व्यक्तित्व, चमत्कारों, कार्यों, शिक्षा आदि के बारे में बताया गया है। किस प्रकार ईसा मसीह ने चर्च की स्थापना की उसके बारे में बताया गया है।

बाइबल की भाषा बहुत ही आसान है। इसमें गूढ़ दार्शनिक बातें नहीं बताई गई है जिसे लोगों को समझने में दिक्कत हो। मनुष्य किस तरह धर्म और मुक्ति के मार्ग पर जाएं यह बाइबिल में अच्छी तरह बताया गया है। किन तत्वों का आचरण, किन पापों से मनुष्य को दूर रहना चाहिए इसके बारे में बाइबिल में बताया गया है। बाइबल के दो भाग हैं पुराना नियम और नया नियम।

QURAN KYA HAI ||WHAT IS QURAN ? & HISTORY IN HINDI||QURAN KAHA SE AYA

बाइबल परमेश्‍वर की तरफ से एक तोहफा है


बाइबल भी एक तोहफा है जो परमेश्‍वर ने हमें दिया है। इसमें ऐसी जानकारी दी गयी है कुरान को छोड़कर दुनिया की किसी और किताब में नहीं मिलेगी। जैसे इसमें बताया गया है कि परमेश्‍वर ने ही स्वर्ग, धरती, पहले आदमी और औरत को बनाया है। इसमें ऐसी सलाह हैं जिन्हें मानने से हम अपनी समस्याओं को सुलझा सकते हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि परमेश्‍वर कैसे इस धरती को एक खूबसूरत बगीचा बनाने का अपना मकसद पूरा करेगा। सच, यह कितना बढ़िया तोहफा है!

जब आप बाइबल की जाँच करेंगे तो आप जान पाएँगे कि परमेश्‍वर चाहता है कि आप उसके दोस्त बनें। आप जितना ज़्यादा उसके बारे में जानेंगे आपकी दोस्ती उतनी ही गहरी होगी।

बाइबिल क्या है? Bible ka महत्व, इतिहास What is Bible? Importance & History in Hindi


बाइबिल की रोचक बातें INTERESTING FACTS OF BIBLE



बाइबिल विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली धर्म ग्रंथ है। इसकी 500 करोड़ कॉपियां बिक चुकी है। यह 2400 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध है। चीन में सबसे अधिक बाइबिल की कॉपी प्रकाशित की जाती है।

इस ग्रंथ में बाइबल की कसम खाने की मनाही है। इसलिए भारत देश में किसी भी न्यायालय में बाइबल की कसम नहीं खिलाई जाती है। डोमिनिकन रिपब्लिक विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जिसके झंडे में बाइबल छपी हुई है।

बाइबल के अनुसार आज से 6000 वर्ष पूर्व ईश्वर ने मनुष्यों को बनाया था। बाइबिल ग्रंथ में डायनासोर के बारे में बताया गया है। 1 दिसंबर 2017 को वाशिंगटन डीसी में बाइबल संग्रहालय खोला गया यह सभी पर्यटकों के लिए खोला गया है।


1-पुराना नियम OLD TESTAMENT


2-नया नियम NEW TESTAMENT


MEANING|| OF INSHAALLAH|| IN HINDI , ENGLISH||ISLAMIC NELOFAR AZHARI


पुराना नियम OLD TESTAMENT



पुराने नियम में यहूदी धर्म की पौराणिक कहानियां गाथाएं लिखी हुई है। यह हिब्रू, इब्रानी और अरामी भाषा में लिखी गई है।

नया नियम NEW TESTAMENT



इस भाग में ईसा मसीह से जुड़ी हुई कहानियां है जो उनके शिष्यों ने लिखी है। ईसा मसीह की जीवनी, उनकी शिक्षा क्या है इसके बारे में बताया गया है। कुछ अरामी और ज्यादातर हिस्सा ग्रीक भाषा में लिखा गया है।

ईसा मसीह के 4 शिष्यों – मत्ती, लूका, युहन्ना और मरकुस ने उनकी जीवनी और उपदेशों के बारे में वर्णन किया है। बाइबिल में कुल मिलाकर 66 भाग है। पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) में 29 भाग है और नव विधान (न्यू टेस्टामेंट) में 27 भाग है। यहूदी धर्म की बाइबल पुराना नियम के अंतर्गत लिखी गई है।


बाइबल अल्लाह ( ईश्वर )द्वारा दी गई किताब है जानते हैं कैसे


Bible अल्लाह तबारक व ताला के द्वारा दी गई किताब है आप कहेंगे कि इंसान ने इसे लिखा है लेकिन यह बात सही है कि इंसान ने इसे लिखा है लेकिन इसका एक-एक अल्फाज लिखे लव एक ही पंक्ति अल्लाह तबारक व ताला की तरफ से भेजी गई है अल्लाह ताला ने ईसा अलैहिस्सलाम को जो भी बताया उन्होंने उसे बाइबल में दर्ज किया उदाहरण के लिए समझते हैं जैसे मान लीजिए आपने अपनी मां का कोई खत लिखा और आपने उस खत में क्या लिखा वह आप जानते हैं लेकिन वह आप कर nahi आपकी मां का ही होगा उसी प्रकार से बायबिल इंसान ने लिखी लेकिन उसमें अल्फ़ाज़ जो भी कुछ लिखा है वह सब ईश्वर यानी अल्लाह तबारक व ताला की तरफ से है उसमें इंसान ने कोई भी छेड़छाड़ नहीं की है!

बाइबल में दी जानकारी एकदम सही है


जब हम अपनी तरफ से  पूरी बाइबल को लिखने में 1,600 से ज़्यादा साल लगे। इसे अलग-अलग  वक्‍त में जीनेवाले लोगों ने लिखा था। इनमें से कुछ बड़े-बड़े लोग थे, जैसे एक वैद्य था और कुछ न्यायी और राजा थे। दूसरे मामूली इंसान थे, जैसे किसान, मछुवारे, चरवाहे और भविष्यवक्‍ता। हालाँकि अलग-अलग लोगों ने बाइबल की किताबें लिखीं, फिर भी उन किताबों का आपस में बढ़िया तालमेल है। ऐसा बिलकुल नहीं है कि एक जगह एक बात लिखी है और दूसरी जगह इसके बिलकुल उलट बात लिखी है। *

बाइबल के शुरू के अध्यायों में बताया गया है कि आज दुनिया में जो तकलीफें हैं उनकी शुरूआत कैसे हुई। और आखिरी अध्यायों में बताया गया है कि परमेश्‍वर कैसे इन सारी तकलीफों का अंत करेगा और इस धरती को एक खूबसूरत बगीचे में बदल देगा। बाइबल में हज़ारों साल का इतिहास दिया गया है और यह दिखाता है कि परमेश्‍वर का मकसद हमेशा पूरा होता है।

बाइबल स्कूल की विज्ञान की किताब नहीं है। फिर भी इसमें विज्ञान से जुड़ी जो भी बातें लिखी हैं एकदम सही हैं। और क्यों न हो, आखिर यह किताब परमेश्‍वर की तरफ से है। एक उदाहरण लीजिए। बाइबल की एक किताब लैव्यव्यवस्था में लिखा है कि परमेश्‍वर ने अपने लोगों यानी इसराएलियों को हिदायत दी कि उन्हें क्या करना चाहिए ताकि बीमारियाँ न फैले। यह बात तब लिखी गयी थी जब लोगों को पता भी नहीं था कि कीटाणुओं से बीमारी फैलती है। इसके अलावा, बाइबल यह भी सिखाती है कि पृथ्वी बिना सहारे के लटकी हुई है, जो कि एकदम सही बात है।(Ayoob26:7) एक वक्‍त पर जब ज़्यादातर लोगों का मानना था कि पृथ्वी सपाट है, वहीं बाइबल में लिखा था कि पृथ्वी गोल है।(yashayha 4022)



बाइबल में दिया इतिहास सच्चा है



बाइबल में दिया इतिहास सच्चा है, जबकि दुनिया के इतिहास की  किताबों में कुछ ऐसी जानकारी है जो सही नहीं है। क्योंकि इतिहास लिखनेवालों ने कई बातों को छिपाया है। जैसे जब उनका देश युद्ध में हार गया तो उन्होंने कई बार यह घटना नहीं लिखी। दूसरी तरफ, बाइबल लिखनेवालों ने सबकुछ सच-सच लिखा। उन्होंने अपने राष्ट्र इसराएल की हार के बारे में लिखा। यही नहीं, उन्होंने अपनी गलतियों के बारे में भी लिखा। उदाहरण के लिए, गिनती की किताब में मूसा ने बताया कि उससे कौन-सी बड़ी गलती हो गयी थी और इस वजह से परमेश्‍वर ने उसे कैसे सुधारा।(Ginti 20:2-12) बाइबल लिखनेवालों की यह ईमानदारी दिखाती है कि यह किताब परमेश्‍वर की तरफ से है और हम बाइबल में लिखी बातों पर यकीन कर सकते हैं।

Bible बढ़िया सलाहों से भरपूर

MEANING|| OF INSHAALLAH|| IN HINDI , ENGLISH||ISLAMIC NELOFAR AZHARI

 


बाइबल ‘परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी है और सिखाने, समझाने, टेढ़ी बातों को सीध में लाने के लिए फायदेमंद है।’ (2Timuthiyuss 3:16)जी हाँ, आज भी अगर हम बाइबल में दी सलाहों पर चलें तो हमें फायदा होगा। ये सलाह दिखाती हैं कि यहोवा हमें कितनी अच्छी तरह जानता है। उसने हमें बनाया है, इसलिए हम क्या सोचते हैं और कैसा महसूस करते हैं, ये सब वह जानता है। हम खुद को भी उतनी अच्छी तरह नहीं जानते जितना वह हमें जानता है। यही नहीं, वह हमें खुश देखना चाहता है। उसे पता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा।


बाइबल की किताब  मती के अध्ययन 5 से 7
में यीशु ने कई मामलों के बारे में बढ़िया सलाह दी है। जैसे सच्ची खुशी कैसे पाएँ, दूसरों के साथ अच्छा रिश्‍ता कैसे बनाएँ, प्रार्थना कैसे करें और पैसों के बारे में सही नज़रिया कैसे रखें। यीशु ने यह सलाह 2,000 साल पहले दी थी, मगर आज भी यह दमदार और फायदेमंद है।

यहोवा ने बाइबल में ऐसे सिद्धांत भी लिखवाए हैं जिन्हें मानने से हमारा परिवार सुखी हो सकता है, हम मेहनती बन सकते हैं और दूसरों के साथ शांति बनाए रख सकते हैं। बाइबल के सिद्धांत हमेशा हमारी मदद कर सकते हैं, फिर चाहे हम कोई भी हों, कहीं भी रहते हों या किसी भी समस्या का सामना कर रहे हों।(yashayha-48:17) सिद्धांत देखिए!


बाइबल की भविष्यवाणियों पर भरोसा कर सकते हैं



बाइबल की बहुत-सी भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं। उदाहरण के लिए, यशायाह नाम के एक भविष्यवक्‍ता ने कहा था कि बैबिलोन शहर नाश हो जाएगा। (यशायाह 13:19) यह कैसे होगा, इस बारे में उसने छोटी-से-छोटी जानकारी दी। बैबिलोन की सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े दरवाज़े थे और चारों तरफ एक नदी भी थी। मगर यशायाह ने भविष्यवाणी की कि नदी को सुखा दिया जाएगा और दरवाज़े खुले छोड़ दिए जाएँगे। शहर पर हमला करनेवालों को लड़ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, वे बड़ी आसानी से इसे जीत लेंगे। यशायाह ने यह भी भविष्यवाणी की कि बैबिलोन को जीतनेवाले का नाम कुसरू होगा।—yashayha -44:27-45:- पढ़िए भविष्यवाणी देखिए–

इस भविष्यवाणी के लिखे जाने के 200 साल बाद एक सेना बैबिलोन पर हमला करने आयी। उसका सेनापति कौन था? फारस का राजा कुसरू, ठीक जैसे भविष्यवाणी में बताया गया था। अब उस भविष्यवाणी की एक-एक बात पूरी होनेवाली थी!

बैबिलोन के लोगों ने सोचा कि उन्हें कोई खतरा नहीं क्योंकि शहर के चारों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारें हैं और एक नदी भी है। इसलिए जिस रात को बैबिलोन पर हमला हुआ उस रात वहाँ दावत चल रही थी। मगर शहर के  बाहर कुसरू और उसकी सेना ने एक नहर खोदी ताकि नदी का पानी कम हो जाए। पानी इतना कम हो गया कि सैनिकों ने आराम से नदी पार कर ली। मगर अब वे बैबिलोन की ऊँची-ऊँची दीवारों को कैसे पार करते? इसकी उन्हें ज़रूरत ही नहीं पड़ी। जैसा भविष्यवाणी की गयी थी ठीक वैसा ही हुआ। शहर के दरवाज़े खुले छोड़ दिए गए। इसलिए सैनिकों ने युद्ध किए बिना ही शहर पर कब्ज़ा कर लिया।


यशायाह ने यह भी भविष्यवाणी की कि आगे चलकर बैबिलोन शहर में फिर कभी कोई नहीं रहेगा। उसने लिखा, “वह नगरी फिर कभी नहीं बसेगी, पीढ़ी-पीढ़ी तक उसमें कोई आकर नहीं रहेगा।” _yashayha-13:20- क्या यह भविष्यवाणी पूरी हुई? जिस जगह पर बैबिलोन हुआ करता था, वह ईराक के बगदाद शहर से 80 किलोमीटर दूर दक्षिण में है। आज वहाँ बस खंडहर हैं और कोई नहीं रहता। सच, यहोवा ने बैबिलोन को ‘विनाश की झाड़ू से झाड़ दिया!


अंग्रेजी भाषा में बाइबिल का अनुवाद  ENGLISH TRANSLATION OF BIBLE



भौगोलिक दृष्टि से बाइबल विश्व का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला धार्मिक ग्रंथ है। अमेरिका, कनाडा ,दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, फ्रांस, वेटिकन, स्पेन, रोम, ब्रिटेन समेत सभी यूरोप में यह धार्मिक ग्रंथ पढ़ा जाता है।

इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड समेत सभी इसाई देशों में भी प्रमुख धर्म ग्रंथ है। यह ईसा मसीह के उद्देश्यों के बारे में बताता है। यह यहूदी धर्म के बारे में सभी पौराणिक कहानियां बताता है। प्राचीन काल में यहूदी बहुत ही खूंखार कबीले वाले लोग हुआ करते थे।



बाइबल का महत्व – पढ़ने के  फायदे  IMPORTANCE OF BIBLE/ BENEFITS TO READ BIBLE


बाइबल का महत्व इस प्रकार है-



बाइबल पढ़ने से मनुष्य पर यीशु मसीह ईश्वर की कृपा बनी रहती है। उसका आशीष प्राप्त होता है।

       बाइबल पढ़ने से हमें मुसीबतों का सामना करने की शक्ति मिलती है। ईश्वर पर विश्वास बना रहता है। यह जीवन में आशा की किरण देती है। ऐसे लोग जो अपने मार्ग से भटक चुके हैं उनको एक नया रास्ता दिखाती है।

       इसको पढ़कर मुक्ति पाई जा सकती है। सत्य क्या है? कैसे जाना जा सकता है? जब तक व्यक्ति सत्य का नहीं जान पाता तब तक व्यक्ति आजाद नहीं हो सकता है।

       बाइबल मनुष्यों को पाप करने से रोकती है। जो लोग पाप करते हैं वह शैतान के गुलाम होते हैं।

       बाइबल पढ़ने से व्यक्ति ईश्वर को अच्छी तरह समझ सकता है। लोगो को इस पुस्तक के कवर से इसे जज नहीं करना चाहिए।

       बाइबल पढ़ने से हम ईश्वर के साथ रह सकते हैं, उससे वार्तालाप कर सकते हैं, उसके साथ समय बिता सकते हैं, उससे बातें कर सकते हैं। बाइबल पढ़ने से व्यक्ति अपने आप को गहराई से समझ सकता है। पादरी ऐसा कहते हैं कि यदि आप ईश्वर को जानना चाहते हैं तो आपको खुद को जानना होगा।

       मनुष्य गलतियां करता है तो ईश्वर यीशु मसीह उसे माफ कर देते हैं। ईश्वर बहुत ही दयावान है। बाइबल यीशु मसीह के बारे में है।

       बाइबिल ने मनुष्यों को मुक्ति का मार्ग बताया गया है। बाइबल पढ़ने से हम खुद को और अपने बच्चों को भी अच्छे संस्कार दे सकते हैं। यह आत्म अनुशासन को बढ़ावा देता है। जो लोग बाइबल पढ़ते हैं वह गुनाह नहीं करते हैं आत्मा का शुद्धिकरण होता है। बाइबिल पढने वाले सत्य के मार्ग पर चलते है।

       जिस प्रकार यदि मनुष्य खाना ना खाए तो दिन पर दिन कमजोर होता जाता है उसी तरह यदि मनुष्य ईश्वर का साथ छोड़ दे तो उसकी आत्मा कमजोर होती जाती है। इसलिए खुद के ईश्वर से जुड़ाव रखने के लिए बाइबल पढ़ना बहुत जरूरी है।

       इसे पढ़ने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक और अच्छे विचार आते हैं ख्याल आते हैं वह अच्छे कामों को करने की कोशिश करता है जो भी बाय दिल को पड़ता है वह अपने मन को पार्क करता है बाइबल एक सच्ची और ईश्वर द्वारा भेजी गई किताब है.

ITIKAF|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||ITIKAF 2019 ||रमजान ||शहरी



बाइबिल कैसे पढ़ना चाहिये HOW TO READ BIBLE



बाइबल को सही तरह से पढ़ना चाहिए। इसे कभी भी जल्दबाजी में नहीं पढ़ना चाहिए। इससे हमेशा प्रार्थना और नम्रता के साथ पढ़ना चाहिए। किसी व्यक्ति को यह घमंड नहीं करना चाहिए कि वह दूसरे से अधिक देर तक पढ़ता है। यदि कोई गलती हो तो हमें ईश्वर इस मसीह से माफी मांगनी चाहिए।


नए लोगों को नया विधान (न्यू टेस्टामेंट) पढ़ना चाहिए। नए नियम की चौथी पुस्तक यूहन्ना ने लिखी है। रचित सुसमाचार से इसे पढ़ना चाहिए। यह समाचार सीधा और सरल शब्दों में लिखा गया है जो कोई भी व्यक्ति समझ सकता है। यह उद्धार की योजना बताता है। प्रभु यीशु मसीह कौन थे, उन्होंने क्या सिखाया इसके बारे में पूरी जानकारी देता है। इसके बाद मरकुस द्वारा लिखा गया समाचार पढ़ना चाहिए।



बाइबल के अध्ययन का सही तरीका क्या है?



उत्तर: इस जीवन में पवित्रशास्त्र के अर्थ को निर्धारित करना एक विश्वासी के लिए एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। परमेश्वर हमें यह नहीं कहते कि हम बाइबल को बस सामान्य रूप में पढें। हमें इसका अध्ययन करना चाहिए और इसे सही रीति से उपयोग करना चाहिए है (2 तीमुथियुस 2:15)। पवित्रशास्त्र का अध्ययन करना बड़े परिश्रम का कार्य है। पवित्रशास्त्र को जल्दबाजी में और थोड़ा बहुत पढना कई बार बहुत गलत निष्कर्षों को दे सकता है । इसलिए, पवित्रशास्त्र के सही अर्थ को निर्धारित करने के लिए कई सिद्धान्तों को समझना अति महत्वपूर्ण है। 

पहला, बाइबल के विद्यार्थी को पवित्र आत्मा से प्रार्थना की करनी चाहिए और उससे समझ प्रदान करने के लिए मांग करनी चाहिए, क्योंकि यह उसके कार्यों में से एक है। ‘‘परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा (यूहन्ना 16:13)। जिस तरह से पवित्र आत्मा ने प्रेरितों को नये नियम को लिखने में मार्ग दर्शन दिया, उस ही तरह से वह हमें भी पवित्रशास्त्र को समझने में मार्गदर्शन देता है। स्मरण रखें, बाइबल परमेश्वर की पुस्तक है, और हमें उससे पूछने की आवश्यकता है कि इसका क्या अर्थ है। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो पवित्रशास्त्र का लेखक – पवित्र आत्मा – आप में वास करता है, और वह चाहता है कि जो उसने लिखा है उसे आप समझ सकें। 

दूसरा, हमें पवित्रशास्त्र के वचनों में से किसी एक वचन को बाहर नहीं निकालना चाहिए और सन्दर्भ से बाहर होते हुए वचन के अर्थ को निर्धारित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हमें सदैव सन्दर्भ को समझने के लिए आस पास के वचनों और अध्यायों को पढना चाहिए। जबकि सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की ओर से आता है (2 तीमुथियुस 3:16; 2 पतरस 1:21), परन्तु फिर भी परमेश्वर ने इसके लेखन के लिए मनुष्यों का उपयोग किया है। इन पवित्र लोगों के मन में एक विषय था, लिखने के लिए एक उदेश्य और कोई विशेष विषय था जिसे वो सम्बोधित कर रहे थे। जिसे वह सम्बोधित कर रहे थे। हमें बाइबल की पुस्तक की पृष्ठभुमि को यह पता लगाने के लिए पढ़ना चाहिए, किसने इस पुस्तक को लिखा, किसे यह लिखी गई थी, और यह कब लिखी गई थी। इसी के साथ हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम लेख को स्वयं को स्पष्ट करने का अवसर दें। कई बार लोग वचनों के साथ अपने ही अर्थ जोड़ देते हैं जिस से उनको अपनी ही मनचाही व्याख्या मिल सके। 



तीसरा, हमें बाइबल का अध्ययन पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर होते हुए आपने आप ही से नहीं करना चाहिए। यह सोचना घमण्ड की बात होगी कि हम अन्य लोग के द्वारा जीवनभर किए गए कार्य से जिन्होंने बाइबल का अध्ययन किया हो कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग, गलती में, बाइबल के अध्ययन करने इस विचार के साथ आते हैं कि वे केवल पवित्र आत्मा पर निर्भर रहेंगे और वे पवित्रशास्त्र की सभी गुप्त सच्चाईयों को जान लेंगे। मसीह ने, पवित्र आत्मा को दिये जाने के द्वारा, मसीह की देह में लोगों को आत्मिक वरदान दिये हैं। इनमें से एक आत्मिक वरदान शिक्षा देना का है (इफिसियों 4:11-12; 1 कुरिन्थियों 12:28)। हमारी सहायता के लिए इन शिक्षकों को परमेश्वर के द्वारा हमें पवित्रशास्त्र को सही रूप से समझने और इसकी आज्ञापालन करने के लिए दिया जाता है। अन्य विश्वासियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना सदैव समझदारी की बात, एक दूसरे को परमेश्वर के वचन की सच्चाई को लागू करने और समझने में सहायता करने के लिए है।

इस कारण, संक्षेप में, बाइबल के अध्ययन करने का सही तरीका क्या है? पहला, प्रार्थना और नम्रता के साथ, हमें अवश्य समझ प्राप्त करने के लिए पवित्र आत्मा पर निर्भर होना चाहिए। दूसरा, हमें सदैव सन्दर्भ में पवित्रशास्त्र का अध्ययन, इस बात को जानते हुए करना चाहिए कि बाइबल स्वयं अपने आपको स्पष्ट करती है। तीसरा, हमें अन्य मसीहियों के अतीत और वर्तमान में किए हुए प्रयासों का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने बाइबल का सही तरीका से अध्ययन करने का प्रयत्न किया है। स्मरण रखे, परमेश्वर बाइबल के लेखक है, और वह चाहता है कि हम इसे समझ सके।

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तीसरा, हमें बाइबल का अध्ययन पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर होते हुए आपने आप ही से नहीं करना चाहिए। यह सोचना घमण्ड की बात होगी कि हम अन्य लोग के द्वारा जीवनभर किए गए कार्य से जिन्होंने बाइबल का अध्ययन किया हो कुछ भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग, गलती में, बाइबल के अध्ययन करने इस विचार के साथ आते हैं कि वे केवल पवित्र आत्मा पर निर्भर रहेंगे और वे पवित्रशास्त्र की सभी गुप्त सच्चाईयों को जान लेंगे। मसीह ने, पवित्र आत्मा को दिये जाने के द्वारा, मसीह की देह में लोगों को आत्मिक वरदान दिये हैं। इनमें से एक आत्मिक वरदान शिक्षा देना का है (इफिसियों 4:11-12; 1 कुरिन्थियों 12:28)। हमारी सहायता के लिए इन शिक्षकों को परमेश्वर के द्वारा हमें पवित्रशास्त्र को सही रूप से समझने और इसकी आज्ञापालन करने के लिए दिया जाता है। अन्य विश्वासियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना सदैव समझदारी की बात, एक दूसरे को परमेश्वर के वचन की सच्चाई को लागू करने और समझने में सहायता करने के लिए है।

SHAB E BARAT ||2019||IN HINDI ||ISLAMIC NELOFAR AZHARI


इस कारण, संक्षेप में, बाइबल के अध्ययन करने का सही तरीका क्या है? पहला, प्रार्थना और नम्रता के साथ, हमें अवश्य समझ प्राप्त करने के लिए पवित्र आत्मा पर निर्भर होना चाहिए। दूसरा, हमें सदैव सन्दर्भ में पवित्रशास्त्र का अध्ययन, इस बात को जानते हुए करना चाहिए कि बाइबल स्वयं अपने आपको स्पष्ट करती है। तीसरा, हमें अन्य मसीहियों के अतीत और वर्तमान में किए हुए प्रयासों का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने बाइबल का सही तरीका से अध्ययन करने का प्रयत्न किया है। स्मरण रखे, परमेश्वर बाइबल के लेखक है, और वह चाहता है कि हम इसे समझ सके।

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5 COMMENTS

  1. जीवन जीनेका सर्वोत्तम तरिका शान्ति, अहिंसा, मानवता, दान, दया, क्षमा, परोपकार और सत्कर्म से परमार्थ सिद्धि करना है । भेद, हिंसा, क्रुसेड, जीहाद, अहंकार और लुटपाटका धर्म मे स्थान नहीं है । आस्था है, ईश्वर उपर अटल सरणागति है और कल्याणकारी कर्म कि आधिन है तो सर्वथा श्रेयस्कर होगा । धर्मके आडमे साम्राज्यवाद, ब्यापार, हत्याकांड, सांस्कृतिक अतिक्रमण और बलात् धर्मांतरण तथा उपनिवेशवाद घोर अपराध है, जिस किसी धर्ममे निन्दनीय है । बाईबल, कुरआन, गीता, त्रिपिटक, जेन्दाअवेस्ता, इनजील, तौरेत, वेद, हदीस… जो भि हो , जगत और मानव कल्याणकारी हो तो ग्राह्य होगा नहीं तो विनाशकारी होगा। ईश्वर सबका एक है, उसपर विनाशर्त समर्पण होना जरुरी होता है ।

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