हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kissa

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हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kissa
हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kissa

हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका|इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kissa

 

हज इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत जिसे हज कहते हैं Ibrahim अब्राहिम अली सलाम के परिवार का एक आजमाइश का वक्त था जो अल्लाह ताला को उनका इंतिहान लेना था और इब्राहिम अलैहिस्सलाम इम्तिहान में पास हो गए!

हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत |kissa
 हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kissa

हज का बयान |हज की फजीलत| हज का तरीका
इब्राहिम अली सलाम की सुन्नत||kis

अरफात का मंजर बड़ा ही अद्भुत होता है। दूर-दूर से आए अल्लाह के बंदों का ठाठें मारता हुआ समुद्र दूर तक नजर आता है। कोई गोरा, कोई काला, कोई छोटा, कोई बड़ा। सबका एक ही लिबास, सबकी जुबानों पर एक ही अल्लाह की बढ़ाई। सब एक ही मुहब्बत में सरमस्त नजर आते हैं।

 

surah al imran ayat||surah Al imran English translation

 

Hajj Ka Bayan

Haj इस्लाम का रुकन और ऐसी Azeem इबादत है
की baaz गुनाह सिर्फ इसी इबादत के जरिए बक्शे जाते हैं और इस फर्ज की अदायगी से इंसान गुनाहों से बिल्कुल ऐसा पार्क व साफ हो जाता है जैसे आज ही पैदा हुआ हो इसकी Taufiq उन्हीं लोगों को मिलती है जो हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आवाज पर लब्बैक कर चुके उल्लूमाइक्राम बयान फरमाते हैं कि अल्लाह ताला ne आपको हुकुम दिया इब्राहिम आबू कुवैत Pahad par Chadh kar Elaan karo

E- logo Allah Tala Ne Tumhare Liye Ghar Banaya और इसका हज तुम पर फर्ज किया लिहाजा अपने रब की दावत कबूल करो वह आवाज कुदरत इलाही से सब के कानों में पहुंची अगर 6 वह अभी पैदा भी नहीं हुए थे जिनके मुकद्दर में हंस था उन्होंने लब्बैक कहां यानी हम हाजिर हैं कहां कहां ले आ जा वहीं किस्मत वाले हज को जाते हैं

 

अगर नियत खालिस और कमाई पार्क थी तो गुनाहों से पाक होकर आते हैं कितना भी बड़ा गुनहगार क्यों ना हो अगर उसकी नियत अच्छी है और वह अपनी जायज मेहनत के पैसों से हज पर गया है तो इंशाअल्लाह को ऐसा पार्कों कर लौटेगा जैसे अभी अभी पैदा हुआ हो और उसने कभी कोई गुनाह किया ही ना हो यह आज की बेहतरीन फजीलत ओं में से एक फजीलत है हज नसीब वालों को ही नसीब होता है जो सच्चे दिल से हज करना चाहे वह बिना पैसों के भी हज पर जा सकता है सच्ची लगन और मोहब्बत अल्लाह खुद जरिए बना देता है और वह हज पर पहुंच जाता है ऐसे बहुत सारे मिसाले हैं.

हज की फजीलत

नबी करीम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया हाजी अपने घर वालों में से 400 की shafaat कराएगा और गुनाहों से ऐसा निकल जाएगा जैसा उस दिन बेगुनाह था जब मां के पेट से पैदा हुआ था.

दूसरी हदीस में हुजूर सय्यद ए आलम सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया हज और उमरा mhotaji और गुनाहों को ऐसे दूर करते हैं जैसे भट्टी लोहे चांदी और सोने की मैल को दूर करती है और hajje mabroor का सवाब जन्नत ही है.

 

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हज का तरीका

हज का तरीका यह है कि घर से रवाना होकर अगर सीधे उसको मक्का मौसम आ जाना है तो हवाई अड्डे पर पहुंचे पहले उमरा का है राम बांध ले फिर हवाई जहाज में सवार होकर जद्दा उतरकर मक्का मजमा पहुंचे सबसे पहले खाना ए काबा का तवाफ करें और फिर सफा मरवा की सही करके सर mundwae और ऐराम खोल दे उसका उमरा मुकम्मल हो गया फिर मक्का moazzama में जहां खय्याम है ईद उल अजा की 8 तारीख तक विलाराम रहे और उस दरमियान नमाजियों के बाद तवाफ करता रहे जब 8 तारीख आए तो सुबह को ehram बांधकर तवाफ करें और सफा मरवा की सही(sai) भी करें और इस सही (sai)में उस सही Sai की भी नियत करें जो मीना से वापस आकर तवाफे जियारत के साथ करना होती है क्योंकि इस नियत की वजह से वह सही अब जरूरी नहीं रह जाएगी!

उसके बाद मिन मीना को रवाना हो जाए और वहां जोहर से फज्र तक कायम करें 9 तारीख की सुबह को सूरज बुलंद होने क bad अराफात के मैदान के लिए रवाना हो वहां जाकर किसी समय में तैयार करें जो हर और असर की नमाज ए अपनी-अपनी वक्त में अपनी जमात के साथ अदा करें .

 

और दुआ वगैरह में मशगूल रहे खूब गिड़गिड़ा कर रो रो कर दुआ करें यहां तक कि मगरिब का वक्त हो जाए लेकिन यहां मगरिब की नमाज नहीं पढ़ना है बल्कि मगरिब के 10 मिनट बाद में नमाज़ पढ़े mujdalfa के लिए रवाना हो जाए और mujdalfa पहुंचकर इशा के वक्त में पहले मगरिब की और उसके बाद इशा की नमाज़ पढ़े फिर आराम करें और सुबह जल्दी उठकर नमाज़ पढ़ ले यहां से 70 कंकरिया गिन कर और धोकर अपने हाथ रख ले और मीना के लिए रवाना हो जाए .

 

मीना पहुंचकर अगर हो सके तो जल्द पहुंचकर बड़े शैतान के साथ उन पर 7 कंकरिया मारे और अगर आराम करने के बाद शाम को जाए जब भी हर्ज नहीं उसके बाद मक्का आकर तवाफ करें चाहे तो पहले कुर्बानी कर ले उसके बाद बाल mundwa kar ehram उतार दे और फिर मक्का जाकर तवाफे जियारत करें तवाफे जियारत अब सही की जरूरत नहीं इसलिए कि ehram बांधने के बात तवाफे करके जो सही sai की थी.

 

उसमें सही की नियत कर ली थी लिहाजा अब जरूरत नहीं उसके बाद 11-12 तारीख में मीना में kayaam करना है और दोनों दिन तीनों शैतानों को कंकरिया मारना है 12 तारीख को सूरज डूबने से पहले मक्का मुकर्रमा के लिए रवाना हो जाए अगर रात तक वहां ठहर गया तो फिर 13 तारीख की कंकरिया मार ना वापस आना होगा .

 

अब आप का Haj पूरा हो गया उसके बाद जब तक मक्का मुकर्रमा में रहता है हर दिन एक या दो उमरे करता रहे उस उम्र में कभी मां-बाप की तरफ से नियत कर ले कभी उस्ताद की और कभी भाई-बहनों और दूसरे खानदान वालों की नियत कर ले आपको भी सवाब मिलेगा और जिनकी नियत करोगे उनको भी sawab उतना ही मिलेगा.

 

उसके बाद जब मदीना मुनव्वरा जाने का प्रोग्राम बन जाए तो वहां के लिए रवाना हो जाओ रास्ते में कसरत से दुरूद पाक पढ़ते रहो पूरी तवज्जो हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम के रोजा ए पाक की जियारत की तरफ लगा दो आज तो sadat मिलने वाली है जहां की एक साथ पर हजारों से कुर्बान उस सरकारी आजम की हाजरी की जिनकी सरकार और मखलूक में सबसे बुलंद वाला है .

 

मदीना तैय्यबा पहुंचकर जितनी जल्द हो सके हुजूर के samne हाजिर हो जाओ nehayati adab के साथ सर झुकाए रोते हुए अगर रोना ना आए तो रोने वालों जैसा मुंह बनाएं हुजूर के सामने खड़े होकर कम से कम 70 मर्तबा दुरुद ओ सलाम पेश करो वहां 8-9 दिन से ज्यादा रहने को नहीं मिलता.

 

कुरान की सबसे पहली सूरत कौन सी है||सुरःफातेहा: तर्जुमा हिंदी में||surha Al-Fatihah in English

 

लिहाजा इसे मस्जिद-ए-नबवी में नमाज अदा करो 40 जो मस्जिद-ए-नबवी में 40 नमाज अदा कर लेता है और उसके लिए जहन्नम से आजादी लिख दी जाती है सुभान अल्लाह ख्याल रहे कि आजकल यहां najdi भी वहां इमाम है लिहाजा उसके पीछे नमाज ना पड़े बल्कि अपनी जमात करें या तन्हाई में पढ़ें.

हज में कुछ चीजें फर्ज है कुछ वाजिब है और कुछ सुन्नत सब को अलग अलग ध्यान में रखें और सब को सही तरीके से अदा करें

Ehraam यह है कि बगैर सिली दो चादर हो उनमें से एक को तह बंद की तरह बांध लेना और दूसरी चादर को कांधे से ओढ़ लेना.

Miqaat -मीकता

जहां से है ehraam बांधा जाता है
हमारे हिंदुस्तान कि मीकात (yalmalam)पहाड़ है
जो जद्दा के करीब है आजकल हवाई जहाज से सफर करने की वजह से उसका पता नहीं चल पाता लिहाजा सब लोग हिंदुस्तान के हवाई अड्डे पर ही आराम बनते हैं अगर मदीने पाक पहले जाना हो तो हवाई अड्डे से आराम बांधने की जरूरत नहीं बल्कि जब मक्का शरीफ जाए तो bandhle.

तहलील- ला इलाह इल्ललाहु मुहम्मर्दुरसूलुल्लाह पढ़ना।

 

TAWAF खाना ए काबा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाना उसे ही TAWAF कहां जाता है .

 

MATAAF – काबे के इर्द-गिर्द वह जगह जहां तवाफ करते हैं

WAA KUF-E-ARFA अराफात के मैदान में ठहरना

SAFA WA MARWA यह दो पहाड़ियां हैं काबा से दक्षिण की जाने जानिब सफा है और सफा ke
मैं मरवा है उन दोनों के दरमियान आने-जाने और दौड़ने को सही sai कहते हैं

 

रमी- जमरा के पास कंकरियाँ मारने को रमी कहते हैं।

 

JAMRAAT- उन सूतून को जब रात कहते हैं जिनको आमतौर पर बड़ा छोटा और मजला शैतान कहा जाता है और उनको कंकरिया मारने को रमी कहा जाता है

तहलीक- सिर के बाल मुँडवाना।

 

तकसीर- सिर के बाल कटवाना और छोटे कराना।

उमरा- एहराम बाँधकर काबा का तवाफ करना और सफा मरवा नामी पहाड़ियों के बीच दौड़ना/उमरा हज के दिनों के अलावा भी कर सकते हैं।

हज तीन तरह का होता है

1-Apradh
2-tamttoa
3-kiraan

Aphradh का मतलब यह है कि सिर्फ हज की नियत से ehram बांधकर जाए और हर अदा करें.

Tamttoa- का मतलब यह है कि मीकाt से उम्र का है ehram bandh और मक्का जाकर उमरा करें फिर आराम खोल दे और हज के लिए ईद की 8 तारीख या 7 तारीख को ehram बांध ले.

Kiraan- का मतलब यह है कि हज और उमरा दोनों की नियत से अहराम बांधे फिर उमरा करके आराम ना खोले बल्कि उसी आराम सहजीवी करें हज भी करें

मीना एक makaam है जो मक्का से 3 मील के फासले पर है और अब मक्का की आबादी से बिल्कुल मिल गया है .

mujdalifa दलएफअ भी एक मकाम hai. जो मीना से तकरीबन 6 किलोमीटर के फासले पर है और अराफात का मैदान भी यहां से इतना ही है.

हज के वाजी बात

हज के बहुत सारे वाजी बात हैं उनमें से कुछ यह है

1- सफा और मरवा के दरमियान दौड़ना

2-waqufe arfa में मगरिब के कुछ बात तक रहना

3-mujdalifa Me ठहरना

4-मगरिब व इशा की नमाज़ अराफात से लौटकर

मुजदलीफाह में पढ़ना नंबर

5 जमरात पर कंकरिया मार ना

6 सर मुंडा ना या बालकतर वाना

7 keraan or tamttoa करने वालों को कुर्बानी करना

8 we bazu तवाफ करना

9 हज करके वापसी के वक्त तवाफ करना यह तवाफे सदर कहलाता है .

आदमी हज करें और गुनाह के paak पार्क हो जाए लेकिन अभी उस दरबार में हाजरी बाकी है जिसके वसीले से हज मिला अगर वहां hajri भी ना हुई तो फिर यह बड़ी ना शुक्री है कि जिसने नेमत दिलाई उन्हीं के दरबार में हाजिरी से मुंह मोड़ लिया बल्कि वहां हाजिरी na देना इस मुश्क वह मेहरबान रसूल को तकलीफ पहुंचाना है फरमाते हैं जिसने हज किया और मेरी जारत ना कि उसने मुझ पर जुल्म किया.

 

हां उनके दरबार में हाजरी खुद अपने ही फायदे के लिए हैं अगर उनके रोजा अनवर का दीदार करोगे तो फरमाते हैं यह ऐसा ही है जैसे मुझे मेरी हयात में देगा सुभानल्लाह फिर इससे बड़ी नेमत क्या होगी कि उनके दीदार का मुद्दा सुनाया जा रहा है जिनका दीदार खुदा का दीदार है और कल मैदान क्यामत में तेरी सदा परेशानियों का इलाज कि वह तेरी शफात करेंगे हां उनके दर से मुंह मोड़ा तो फिर कहीं का ना रहा याद रखो वहां की एक नेकी 50,000 के बराबर है लेकिन गुनाह अगर एक है तो एक ही लिखा जाएगा सुभानल्लाह

अब गुलाम हिसाब लगाए कि आका के दरबार से किस कदर नेमतों कि इस पर बारिश हो रही है बल्कि हज की मूल्य भी उन्हीं के करम से वाबस्ता है अगर उनसे जुदा होकर अल्लाह ताला का जिक्र कर कोई करे तो यह देख नहीं जहन्नम का रास्ता है लिहाजा उनके दरबार की और अपने लिए हरसाद से बढ़कर आदत समझो वह खुद फरमाते हैं

 

जो मक्का आकर हज करें फिर मेरी जियारत के लिए मेरी मस्जिद में हाजिर हो तो दो मकबूल हज का सवाब पाए यानी हुआ और भी दोगुना मिला और मकबूल हज का बदला जन्नत ही है जहां अल्लाह रब्बुल इज्जत का दीदार और इसके महबूब का कुर्बा हासिल होगा जो तमाम नेमतों का खुलासा और निचोड़ है.

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