अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी

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अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी
अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी

अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी

 

अब्दुल क़ादिर जीलानी, अल-सय्यद मुहियुद्दी अबू मुहम्मद अब्दल क़ादिर जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी अब्दुल कादिर जिलानी सारे वलियों के सरदार है

 

अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी
 अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी

अब्दुल कादिर जिलानी |हिंदी में अब्दुल क़ादिर जीलानी

अब्दुल कादिर जिलानी एक मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के deen को आगे बढ़ाने वाले सच्चे पक्के आशिक ए रसूल दिन और रात इबादत करने वाले geab की खबर जानने वाले इंसाफ करने वाले और पक्के सुन्नी sufiwad और तमाम दुनिया के जितने भी वर्ली हैं उनके कंधों पर हुजूर गौसे आजम अब्दुल कादिर जिलानी का कदम मुबारक है जो भी इंसान किसी से भी मुरीद होता है तो वह पहले गौसे आजम यानी अब्दुल कादिर जिलानी का मुरीद हो जाता है सभी औलिया अल्लाह का सिलसिला अब्दुल कादिर जिलानी से जाकर मिलता है

 

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अब्दुल कादिर जिलानी की पैदाइश (जन्म)

17 मार्च 1078, अमुल, ईरान

अब्दुल कादिर जिलानी की वफात (मृत्यु)

फ़रवरी 1166, बगदाद, इराक

आपका पूरा नाम (पूर्ण नाम)

Muḥyī-al-Dīn Abū Muḥammad b. Abū Sāleh ʿAbd al-Qādir al-Gīlānī

Aap ka Mazar (दफ़नाया गया) Abdul Qadir Gilani Mausoleum, बगदाद

aap ki aulad (बच्‍चे)Abdul Razzaq Gilani, अब्दुल वहाब गिलानी, अब्दुलरज़्क गिलानि, ज़्यादा

अब्दुल क़ादिर जीलानी (अरबी: عبد القادر الجيلاني‎), (फ़ारसी: عبد القادر گیلانی, तुर्कीयाई : Abdülkâdir Geylânî, उर्दू: عبد القادر گیلانی Abdolqāder Gilāni,(तमिल: அப்துல் காதிர் ஜிலானி ரலியல்லாஹூ அன்ஹூ), बांग्ला: আব্দুল কাদের জিলানী (রহ.)) अल-सय्यद मुहियुद्दी अबू मुहम्मद अब्दल क़ादिर जीलानी अल-हसनी वल-हुसैनी आप की पैदाइश (जन्म: 11 रबी उस-सानी, 470 हिज्री, नाइफ़ गांव, जीलान जिला, इलम प्रान्त, तबरेस्तान, पर्शिया। देहांत – इराक़ 8 रबी अल अव्वल, 561 हिज्री शहर बग़दाद, (1077–1166 CE), ईरान से थे। हम्बली सही फैसला करने वाले न्यायसूत्र परंपरा और सूफ़ी संत। इनका निवास बगदाद शहर। इनहोंने क़ादरियासूफ़ी परंपरा की शुरूआत की। सुन्नी मुसलमानों द्वारा शेख ‘अब्द अल-क़दीर अल-जिलानी के रूप में आपकी इज्जत बढ़ाने के लिए अल जिलानी लगाया जाता है

 

12 वीं रबी उल अव्वल 2019||ईद ए मिलाद 2019 और 2020|अस्थायी रूप से रविवार, 10 नवंबर 2019 को मनाया जाएगा।

 

अब्दुल कादिर जिलानी सारे वलियों के सरदार है तमाम वलियों के कंधों पर आपका कदम है मुबारक है आपकी तारीफ में जितने भी अल्फाज कह जाए वह कम है जब हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम मेराज पर गए थे

 

तब एक नौजवान ने अपने कांधे पर उसूर सल्ला वाले वसल्लम का पाव मुबारक रखकर आगे बढ़ाया था यानी अर्शी आज़म तक पहुंचाया था जब अल्लाह ताला से हुजूर सल्ला वाले वसल्लम ने पूछा था

 

यह नौजवान कौन है अल्लाह तबारक व ताला ने इरशाद फरमाया था कि यह अब्दुल कादिर है और यह तुम्हारी उम्मत में होगा और तमाम जहान के वलियों का सरदार होगा आपका यह मर्तबा अर्शी आज़म के ऊपर था

अब्दुल कादिर जिलानी के वालिद का नाम
(Father) अबू सालेह मूसा अल-हसनी

अब्दुल कादिर जिलानी की वालिदा का नाम (माँ )उम्मुल खैर फ़ातिमा
• मदीना
• सादिक़ा
• मू’मिना
• महबूब

अब्दुल कादिर जिलानी को जब बिस्मिल्लाह पढ़ाने के लिए मौलाना साहब ने कहां पढ़ो बिस्मिल्लाह तो आपने कहा हाउस बिल्ला ही मिनिस्टर इतवान रजीव aow’so billahi minash shaitoanir rajeem bismillahirrahmanirrahim और फिर कुरान ए करीम के 14 पारे सुना दिए.

 

मौलाना साहब हैरान हो गए इतना छोटा बच्चा जो पहली बार बिस्मिल्लाह पढ़ने हमारे पास आया था वह 14 पारे सुना रहा है आपने अब्दुल कादिर से पूछा बेटे आपको यह पारे किसने hibs कराएं तो आप ने फरमाया कि जब मैं पैदा नहीं हुआ था

 

तो मेरी अम्मी कुरान पर पढ़ा करती थी और वही से मुझे यह पारे hibs हो गए हैं तो मौलाना साहब ने कहा और आगे हिंदी में सुनाइए तो अब्दुल कादिर ने फरमाया के मेरी अम्मी को सिर्फ 14 पारे ही hibs थे इसलिए मुझे 14 पारे ही hibs है यह वाक्य आपकी बचपन का है

शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने अपना शुरुआती वक्त अपने शहर जिला में ही बिताया फिर उसके बाद अब पढ़ाई के लिए 1095 मैं लगभग 18 साल की उम्र में आप बगदाद गए
हिंदी में शेख अब्दुल कादिर को अबू सईद मुबारक मखज़ुमी और इब्न अकिल के तहत हनबाली कानून पढ़ाया गया । उन्हें अबू मोहम्मद जाफर अल-सरराज द्वारा हदीस पर सबक दिए गए थे।.

 

अपनी तालीम (शिक्षा )पूरी करने के बाद,हज़रत जीलानी ने बगदाद छोड़ दिया। उन्होंने इराक के रेगिस्तानी क्षेत्रों में एक समावेशी भटकने वाले के रूप में पच्चीस साल इबादत में बिताएं।

 

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अब्दुल कादिर जिलानी के बेटों का नाम

• सैफ़ुद्दीन
• शरफ़ुद्दीन
• अबू बक्र
• सिराजुद्दीन
• यह्या
• मूसा
• मुहम्मद
• इब्राहीम
• अब्दुल्ला
• अब्दुल वहाब
• अबू नासिर मूसा

आपको अलग अलग कहीं khitabo से नवाजा गया जिनमें कुछ यह है

• शेख़
(“नेता”)

• अब्द अल क़ादिर्

• अल-जीलानी
(“जीलान से सम्बंधित”)

• मुहियुद्दीन
(“धर्म की पुनस्थापना करने वाले”)

• अल-ग़ौस अल-आज़म्
• (“मदद करने वाले”)

• सुलतान अल-औलिया
(“संतों के सुल्तान”)

• अल-हसनी अल-हुसैनी
(“इमाम हसन और इमाम हुसैन दोनों के वारिस)

हजरत Sheikh अब्दुल कादिर जिलानी के valid (पिता) सय्यद घराने से थे आपके वालिद को शेख लकप से नवाजा गया था

क़ादिरिया परंपरा की आध्यात्मिक शृंखला

हज़रत मुहम्मद

अमीर अल मोमिनीन अली इब्न अबी तालिब

शेख़ ख़वाजा हसन बसरी

शेख़ हबीब अजमी

शेख़ दाउद ताई

शेख़ मारूफ़ कर्खी

शेख़ सिर्री सक़्ती

शेख़ जुनैद अल-बग़दादी

शेख़ अबू बक्र शिब्ली

शेख़ अज़ीज़ अल तमीमी

शेख़ वाहिद अल तमीमी

शेख़ फ़राह तर्तूसी

शेख़ हसन क़ुरेशी

शेख़ अबू सईद अल मुबार मुकर्रमी

शेख़ सय्यद अब्दुल-क़ादिर जीलानी

अब्दुल कादिर जिलानी के खलीफा

(1) Khwaja शहाब अल-दीन सुहरवर्दी

(2) हज़रत अबू मदयान

(3) शाह अबू उमर क़ुरेशी मज़रूकी

(4) शेख़ क़रीब अल्बान मोसाली

(5) शेख़ अह्मद बिन मुबारक्

(6) शेख़ अबू सईद शिबली

(7) शेख़ अली हद्दाद

 

अब्दुल कादिर जिलानी

शेख अब्दुल कादिर जिलानी से मांगी गई कोई भी दुआ खाली नहीं जाती अगर किसी को भी अपनी दुआ कुबूल करवानी हो तो वह गौसे आजम का वसीला देकर यानी शेख अब्दुल कादिर जिलानी का वसीला देकर अल्लाह से मांगे तो वह दुआ इंशाल्लाह जरूर कबूल होती है अब्दुल कादिर जिलानी का गुस्सा बेहद तेज था उनका जलाल बहुत ज्यादा था

 

अगर कोई परिंदा भी उनके मजार के ऊपर से गुजर जाता तो वह जलकर राख हो जाता एक मर्तबा दो अब्दाल आसमान में शेयर कर रहे थे अचानक गौसे आजम की मजार के पास आए तो उन्होंने सोचा कि मजार से बचकर नि7कले अचानक शैतान ने उन्हें उलझा दिया और उनके मन में ख्याल आया कि हम भी तो अब दाल हैं

 

हमारा भी बहुत बड़ा मर्तबा है यह सोचकर वह मजार के ऊपर से गुजर गए और उसके बाद वह दोनों जमीन पर आकर ऐसे गिरे के हाथ पांव सभी कुछ टूट गया और वह जिंदगी भर के लिए लाचार होकर एक कोने में पड़े रहे.

 

अगर कोई कभी भी किसी भी मुसीबत में हो और सच्चे दिल से कह दे या गौस अल मदद तो उसे गौस की मदद जरूर मिलती है अब्दुल कादर जीलानी को और से आजम के नाम से भी जाना जाता है और या गौस अल मदद कहने पर अकेले रास्ते में भी मदद मिल जाती है बशर्ते इंसान सच्चे दिल से Gaus Al madad Bole पुकारे.

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