Ahmed Raza Khan Barelvi, या “आला हज़रत” के नाम से जाना जाता है Ahmed Raza Khan Barelvi”(14 जून 1856 सीई या 10 शावाल 1272 एएच – 28 अक्टूबर 1921 सीई या 25 सफार 1340 एएच ), एक इस्लामी विद्वान, न्यायवादी, धर्मविज्ञानी, तपस्वी, सूफी और ब्रिटिश भारत में सुधारक थे.
शान ऐ आला हज़रत Ala Hazrat और पूरी जानकारी इमाम अहमद राजा खान बरेलवी Imam Ahmed Raza Khan Barelwi
Ahmed Raza Khan Barelvi karamat
Ahmed Raza Khan Barelvi karamat: मेरे मुर्शिद आला हज़रत सरकार अपनी मस्जिद से नमाज़ पढ़ कर तशरीफ़ ला रहे थे के मुहल्ला सौदागरान की गली में लोगों का हुजूम देखा आला हज़रत ने दरयाफ़्त किया ये कैसा मजमा लगा है तो बताया गया के एक गैर मुस्लिम जादूगर अपना जादू दिखा रहा है तीन , चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे तागे से उठा रहा है. आला हज़रत सरकार भी इस मजमे की तरफ बढे और उस जादूगर से फरमाने लगे : हम ने सुना है तीन , चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे तागे से उठा लेते हो -?
उस ने कहा — जी हाँ!
इरशाद फ़रमाया __ कोई और चीज़ भी उठा सकते हो -?
उसने कहा – लाइये!
जो चीज़ आप दें उठा सकता हूँ
आला हज़रत ने अपने जूते को पैर से निकालते हुए 【 आप नागरा जूता पहनते थे , जो मुश्किल से 50 ग्राम का होगा 】 फ़रमाया __
लो इस जूते को उठाना तो बढ़ी बात है , अपनी जगह से हटा कर ही दिखा दो -?
जादूगर ने बहुत कोशिश की लेकिन वह उस नाअले मुक़द्दस को अपनी जगह से हिला नहीं सका
आला हज़रत ने फिर इरशाद फ़रमाया — अच्छा इस बर्तन ही को अब उठा कर दिखा दो -?
अब जो उसने बर्तन को उठाना चाहा , तो बर्तन भी नहीं उठ सका वह जादूगर इस करामत को देख कर आला हज़रत के क़दमों पर गिर पढ़ा और कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गाय हुआ और आला हज़रत की बारगाह से रूहानियत की दौलत लेकर वापस हुआ ………..
तुमने बदमज़हबी से बचा कर शहा, दौलते दीन इस्लाम कर दी अता ,
गौसो , ख़्वाजा के हो मज़हर ओ जानशीं , सैय्यदी मुर्शदी शाह अहमद रज़ा…….

आला हजरत कौन है
अहमद रजा खान (अरबी : أحمد رضا خان, फारसी : احمد رضا خان, उर्दू : احمد رضا خان, हिंदी : अहमद रज़ा खान), जिसे आमतौर पर अहमद रजा खान बरेलवी, अरबी में इमाम अहमद रज़ा खान, या “आला हज़रत” के नाम से जाना जाता है -हज़रत “(14 जून 1856 सीई या 10 शावाल 1272 एएच – 28 अक्टूबर 1921 सीई या 25 सफार 1340 एएच ), एक इस्लामी विद्वान, न्यायवादी, धर्मविज्ञानी, तपस्वी, सूफी और ब्रिटिश भारत में सुधारक थे, और संस्थापक बरलेवी आंदोलन का। रजा खान ने कानून, धर्म, दर्शन और विज्ञान सहित कई विषयों पर लिखा था।
Ahmed Raza Khan Barelvi History, आला हजरत का जन्म कब हुआ
इमाम ए अहले सुन्नत अल – हाफिज, अल- कारी अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी का जन्म १० शव्वाल १६७२ हिजरी मुताबिक १४ जून १८५६ को बरेली में हुआ। आपके पूर्वज सईद उल्लाह खान कंधार के पठान थे जो मुग़लों के समय में हिंदुस्तान आये थें। इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी के मानने वाले उन्हें आला हजरत के नाम से याद करते हैं। आला हज़रत बहुत बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक, तथा समाज सुधारक थे।
जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब विद्वानों ने यह उपाधि दी। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह तआला व मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तआला की सुन्नतों को जीवित कर के इस्लाम की सही रूह को पेश किया, आपके वालिद साहब ने 13 वर्ष की छोटी सी आयु में अहमद रज़ा को मुफ्ती घोषित कर दिया। उन्होंने 55 से अधिक विभिन्न विषयों पर 1000 से अधिक किताबें लिखीं जिन में तफ्सीर हदीस उनकी एक प्रमुख पुस्तक जिस का नाम “अद्दौलतुल मक्किया ” है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम शरीफ़ में लिखा। उनकी एक और प्रमुख किताब फतावा रजविया इस सदी के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है जो 13 विभागों में वितरित है।
इमाम अहमद रज़ा खान ने कुरान ए करीम का उर्दू अनुवाद भी किया जिसे कंजुल ईमान नाम से जाना जाता है, आज उनका तर्जुमा इंग्लिश, हिंदी, तमिल, तेलुगू, फारसी, फ्रेंच, डच, स्पैनिश, अफ्रीकी भाषा में अनुवाद किया जा रहा है, आला हज़रत ने पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान को घटाने वालो को क़ुरआन और हदीस की मदद से मुंह तोड़ जवाब दिया!
आपके ही जरिए से मुफ्ती ए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान, हुज्जतुल इस्लाम हामिद रज़ा खान, अख़्तर रज़ा खान अज़हरी मियाँ, जैसे बुजुर्ग इस दुनिया में आए, जिन्होंने इल्म की शमा को पूरी दुनिया में रोशन कर दिया,जब आला हजरत हज के लिए गए हुए थे तब उन्हें हुज़ूर का दीदार करने की तलब हुए तो उन्होंने इस तलब में एक शायर पढा “ऐ सूए न लाज़र फिरते है मेरे जैसे अनेक ओ कार फिरते है”।
आला हज़रत ने अपने जिन्दगी मे इतनी सारी किताबों को तहरीर किया के जो एक आम इन्सान के बस के बाहर हैं।
दरगाह आला हजरत बरेली, उत्तर प्रदेश [प्रारंभिक जीवन और परिवार]
अहमद रज़ा खान बरलेवी के पिता, नाकी अली खान, रजा अली खान के पुत्र थे। अहमद रजा खान बरलेवी पुष्तुन के बरेच जनजाति से संबंधित थे। बारेच ने उत्तरी भारत के रोहिल्ला पुष्टनों के बीच एक जनजातीय समूह बनाया जिसने रोहिलखंड राज्य की स्थापना की। मुगल शासन के दौरान खान के पूर्वजों कंधार से चले गए और लाहौर में बस गए।
खान का जन्म 14 जून 1856 को मोहाल्ला जसोली, उत्तर-पश्चिमी प्रांतों बरेली शरीफ में हुआ था। उनका जन्म नाम मुहम्मद था। पत्राचार में अपना नाम हस्ताक्षर करने से पहले खान ने अपील “अब्दुल मुस्तफा” (“चुने हुए का नौकर”) का इस्तेमाल किया था।
खान ने ब्रिटिश भारत में मुसलमानों के बौद्धिक और नैतिक गिरावट देखी। उनका आंदोलन एक लोकप्रिय आंदोलन था, जो लोकप्रिय सूफीवाद का बचाव करता था, जो दक्षिण एशिया में देवबंदी आंदोलन और कहीं और वहाबी आंदोलन के प्रभाव के जवाब में बढ़ गया था।
आज आंदोलन पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, तुर्की, अफगानिस्तान, इराक, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के अन्य देशों के अनुयायियों के साथ दुनिया भर में फैल गया है। आंदोलन में अब 200 मिलियन से अधिक अनुयायियों हैं। आंदोलन शुरू होने पर काफी हद तक एक ग्रामीण घटना थी, लेकिन वर्तमान में शहरी, शिक्षित पाकिस्तानी और भारतीयों के साथ-साथ दुनिया भर में दक्षिण एशियाई डायस्पोरा के बीच लोकप्रिय है।
कई धार्मिक स्कूल, संगठन और शोध संस्थान खान के विचारों को पढ़ते हैं, जो सूफी प्रथाओं और पैगंबर मुहम्मद को व्यक्तिगत भक्ति के अनुपालन पर इस्लामी कानून की प्राथमिकता पर जोर देते हैं।
Taajush Shariah Mufti Muhammad Akhtar Raza Khan Qadri Al-Azhari
Muhammad||Sallallahu alayhi wa sallam Reading Barkate Nabuwat
Muhummad||s.a.w QISSA HIJRAT-E-HABSHA
आला हज़रत (Ala Hazrat) बचपन शरीफ़ की शानदार झल्कियां
( 1 ). रबीउल अव्वल 1276 हि . / 1860 ई . को तकरीबन 4 साल की उम्र में कुरआने पाक ख़त्म फ़रमाया इसी उम्र में फ़सीह अरबी में गुफ्त्गू फ़रमाई ।
( 2 ). रबीउल अव्वल 1278 हि . / 1861 ई . को तकरीबन 6 साल की उम्र में पहला बयान फ़रमाया ।
( ३ ). 1279 हि . / 1862 ई . को तकरीबन 7 साल की उम्र में रमज़ानुल मुबारक के रोजे रखना शुरूअ फ़रमाए ।
( 4 ). शव्वालुल मुकर्रम 1280 हि . / 1863 ई . को तकरीबन 8 साल की उम्र में मस्अलए विरासत का शानदार जवाब लिखा ।
( 5 ). 8 साल ही की उम्र में नहूव की मशहूर किताब हिदायतन्नहूब पढ़ी और उस की अरबी शर्ह भी लिखी ।
( 6 ). शा’बानुल मुअज्जम 1286 हि . / 1869 ई . को 13 साल 4 माह और 10 दिन की उम्र में उलूमे दसिया से फ़रागत पाई , दस्तारे फजीलत हुई ,
( 7 ). उसी दिन फ़तवा नवीसी का बा काइदा आगाज़ फ़रमाया और दसै तदरीस का भी आगाज़ फ़रमाया ।
आला हज़रत इमाम अहमद राजा खान के औलादो का नाम
आला हज़रत को ७ औलादे थी जिसमे से दो साहब जादे और ५ साहब जादिया थी। आज भी हम उनकी औलादो से फैज़ हासिल कररहे है आला हज़रात के साहब जादो का नाम
आला हज़रत (Ala Hazrat) के २ साहब जादो का नाम
( १ ). हुज्जतुल इस्लाम इस्लाम मुफ्ती मोहम्मद हमीद खान रहमतुल्ला ताला अलै
( २ ). मुफ़्ती मुफ़्ती आजमे हिन्द मौलाना मुहम्मद मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान नूरी रहमतुल्ला ताला अलै
आला हज़रत (Ala Hazrat) के ५ साहब जादियो का नाम
( १ ). मुस्तफई बेगम
( २ ). कनीसे हसन
( ३ ). कनीसे हुसैन
( ४ ). कनीसे हसनैन
( ५ ). मुर्तज़ई बेगम
आला हज़रत के फ़तावा
इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा खान ने हज़ारों फ़तावा तहरीर फ़रमाए हैं , जब आप ने 13 साल 10 माह 4 दिन की उम्र में पहला फ़तवा ” हुर्मते रिज़ाअत ” ( या’नी दूध के रिश्ते की हुर्मत ) पर तहरीर फ़रमाया तो आप के अब्बूजान मौलाना नकी अली ख़ान ने आप की फ़काहत ( या’नी आलिमाना सलाहिय्यत ) देख कर आप को मुफ्ती के मन्सब पर फ़ाइज़ कर दिया।
इस के बा वुजूद आ’ला हज़रत काफ़ी अर्से तक अपने अब्बूजान से फ़तावा चेक करवाते रहे और इस कदर एहतियात फ़रमाते कि अब्बूजान की तस्दीक़ के बिगैर फ़तवा जारी न फ़रमाते । आ’ला हज़रत (Ahmed Raza Khan Barelvi ) के 10 साल तक के फ़तावा जम्अ शुदा नहीं मिले , 10 साल के बाद जो फ़तावा जम्अ हुए वोह ” अल अताया अल नाबाविया फीलफतावा अल रज़ाविया ” के नाम से 30 जिल्दों पर मुश्तमिल हैं और उर्दू ज़बान में इतने ज़खीम ( या’नी बड़े बड़े ) फ़तावा।
मैं समझता हूं कि दुन्या में किसी मुफ्ती ने भी नहीं दिये होंगे , येह 30 जिल्दें ( 30 Volumes ) तकरीबन बाईस हज़ार ( 22000 ) सफ़हात पर मुश्तमिल हैं और इन में छे हज़ार आठ सो सेंतालीस ( 6847 ) सुवालात के जवाबात , दो सो छे ( 206 ) रसाइल और इस के इलावा हज़ारहा मसाइल ज़िम्नन जेरे बहूस बयान फ़रमाए हैं । अगर किसी ने येह जानना हो कि आ’ला हज़रत कितने बड़े मुफ्ती थे तो वोह आप के फ़तावापढ़े , मुतअस्सिर हुए बिगैर नहीं रहेगा ,
मेरे आका आ’ला हज़रत ने अपने फ़तावा में ऐसे निकात ( या’नी पोइन्ट्स ) बयान फ़रमाए हैं अक्ल हैरान रह जाती है कि किस तरह आ’ला हज़रत ने येह लिखे होंगे ( माहनामा फैजाने मदीना , सफ़रुल मुज़फ्फर 1441 , मक्तबतुल मदीना )
सुवालात का जवाब
शैख़ अब्दुल्लाह मिरदाद बिन अहमद अबुल खैर ने आ’ला हज़रत [ Ahmed Raza Khan Barelvi ] की ख़िदमत में नोट ( या’नी काग़ज़ी करन्सी ) के मुतअल्लिक 12 सुवालात पेश किये , आप ने एक दिन और कुछ घन्टों में उन के जवाबात लिखे और किताब का नाम ” कीफलूल फ़ाकिहिल फहीम फ़ीअहकामी किर्तासीध दाराहीम ” तज्चीज़ फ़रमाया , उलमाए मक्कए मुकर्रमा जैसे शैखुल अइम्मा अहमद बिन अबुल खैर , मुफ्ती व काज़ी सालेह कमाल , हाफ़िजे कुतुबे हरम सय्यिद इस्माईल खलील , मुफ्ती अब्दुल्लाह सिद्दीक़ और शैख़ जमाल बिन अब्दुल्लाह ने किताब देख कर हैरत का इज़हार किया और खूब सराहा ( या’नी तारीफ़ की ) ।
येह किताब मुख़्तलिफ़ प्रेस ने कई बार प्रिन्ट की हत्ता कि 2005 ई . में बैरूत लुबनान से भी प्रिन्ट हुई , इस वक्त येह किताब एक यूनीवर्सिटी के “ एम.ए ” के स्लेबस में भी शामिल है । ( माहनामा फैजाने मदीना , सफ़रुल मुज़फ्फ़र 1440 )
मुजद्दिदे दीनो मिल्लत Ahmed Raza Khan Barelvi
इत्तिफ़ाके उलमाए अरबो अजम चौदहवीं सदी के मुजद्दिद , आ’ला हज़रत (Ala Hazrat) इमाम अहमद रज़ा खान (Imam Ahmed Raza Khan Barelwi) हैं बल्कि मौलाना अश्शैख़ मुहम्मद बिन अल अरबी अल जज़ाइरी ने आ’ला हज़रत का तज्किरए जमील ( खूब सूरत ज़िक्र ) इन अल्फ़ाज़ में फ़रमाया : ” हिन्दूस्तान का जब कोई आलिम हम से मिलता है तो हम उस से मौलाना शैख़ अहमद रज़ा खां हिन्द के बारे में सुवाल करते हैं , अगर उस ने तारीफ़ की तो हम समझ लेते हैं कि येह सुन्नी ( या’नी सहीहुल अकीदा ) है और अगर उस ने मज़म्मत की ( बुरा भला कहा ) तो हम को यकीन हो जाता है कि येह शख्स गुमराह और बिद्अती है ( अन्वारुल हदीस , स . 19 , मक्तबतुल मदीना )
जन्नत की तरफ़ पहल करने वाला
इमामे अहले सुन्नत अहबाब के शदीद इसरार पर अपने इन्तिकाल शरीफ़ से तीन साल क़ब्ल जबल पूर तशरीफ़ ले गए और वहां एक माह कियाम फ़रमाया । इस दौरान वहां के रहने वालों ने आप से खूब फैज़ पाया , इमामेअहले सुन्नत ने घरेलू ना चाकियों वालों की इस तरह रहनुमाई फ़रमाई कि जो अफ़ाद एक दूसरे से रिश्तेदारी ख़त्म कर चुके थे वोह आपस में सुल्ह के लिये तय्यार हो गए ।
दो भाई आ’ला हज़रत के मुरीद थे , एक दिन दोनों हाज़िर हुए , आप ने दोनों की बात सुनने के बाद येह ईमान अफ़ोज़ जुम्ले इर्शाद फ़रमाए : ” आप साहिबों का कोई मज़हबी तख़ालुफ़ ( या’नी मुखालफ़त ) है ? कुछ नहीं । आप दोनों साहिब आपस में पीर भाई हैं नस्ली रिश्ता छूट सकता है लेकिन इस्लामो सुन्नत और अकाबिरे सिल्सिला से अक़ीदत बाकी है तो येह रिश्ता नहीं टूट सकता ।
दोनों हकीकी भाई और एक घर के , तुम्हारा मज़हब एक , रिश्ता एक , आप दोनों साहिब एक हो कर काम कीजिये कि मुखालिफ़ीन को दस्त अन्दाज़ी का मौक़अ न मिले । खूब समझ लीजिये ! आप दोनों साहिबों में जो सब्कत ( या’नी पहल ) मिलने में करेगा जन्नत की तरफ़ सब्कत करेगा । ” आप के इन जुम्लों का फ़ौरन असर ज़ाहिर हुवा , नाराजी भुला कर उसी वक्त एक दूसरे के गले लग गए ।( मल्फूज़ाते आ’ला हज़रत , स . 267 मुलख्ख़सन , मक्तबतुल मदीना )
बुन्दों का तोहफा
आ’ला हज़रत (Ahmed Raza Khan Barelvi ) ने एक दिन मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी से फ़रमाया ” मुझे अपनी दो बच्चियों के लिये बुन्दे ( Earrings ) चाहिएं । ” मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी ने हुक्म की ता’मील करते हुए एक मशहूर दुकान से बुन्दों की बहुत ही खूब सूरत दो जोड़ियां ला कर पेश कर दीं ।आ’ला हज़रत को बुन्दे बहुत पसन्द आए , सामने ही मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी की दोनों नन्ही मुन्नी साहिब ज़ादियां बैठी हुई थीं ,
आ’ला हज़रत (Ahmed Raza Khan Barelvi ) ने फ़रमाया : ” ज़रा इन बच्चियों को पहना कर देखता हूं कि कैसे लगते हैं ” येह फ़रमा कर आ’ला हज़रत ने खुद अपने मुबारक हाथों से दोनों बच्चियों को बुन्दे पहनाए और दुआएं अता फ़रमाई । इस के बाद आ’ला हज़रत ने बुन्दों की कीमत पूछी , मुफ़्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी ने अर्ज किया : हुजूर ! कीमत अदा कर दी है ( आप बस बुन्दे क़बूल फ़रमाइये ) । इस के बाद आप अपनी बेटियों के कानों से बुन्दे उतारने लगे ( येह सोच कर कि येह बुन्दे आ’ला हज़रत की साहिब ज़ादियों के लिये हैं )
लेकिन आ’ला हज़रत ने फौरन इर्शाद फ़रमाया : ” रहने दीजिये ! मैं ने येह बुन्दे अपनी इन्ही दो बच्चियों के लिये तो मंगवाए थे ” इस के बाद आप ने मुफ्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी को बुन्दों की कीमत भी अता फ़रमाई । ( इक्रामे इमाम अहमद रज़ा , स . 90 मफ्हूमन , इदारए सऊदिया )

सात पहाड़ सरकारे आ’ला हज़रत (Ahmed Raza Khan Barelvi )
जबल पूर के सफ़र में किश्ती ( Ship ) में सफ़र फ़रमा रहे थे “ किश्ती ” निहायत तेज़ जा रही थी , लोग आपस में मुख़्तलिफ़ बातें कर रहे थे , इस पर आप ने इर्शाद फ़रमाया : ” इन पहाड़ों को कलिमए शहादत पढ़ कर गवाह क्यूं नहीं कर लेते ! ” ( फिर फ़रमाया 🙂 एक साहिब का मा’मूल था जब मस्जिद तशरीफ़ लाते तो सात ढेलों ( Stones या’नी पथ्थरों ) को जो बाहर मस्जिद के ताक में रखे थे अपने कलिमए शहादत का गवाह कर लिया करते।
इसी तरह जब वापस होते तो गवाह बना लेते । बा’दे इन्तिकाल मलाएका ( या’नी फ़िरिश्ते) उन को जहन्नम की तरफ़ ले चले , उन सातों ढेलों ने सात पहाड़ बन कर जहन्नम के सातों दरवाजे बन्द कर दिये और कहा : ” हम इस के कलिमए शहादत के गवाह हैं । ” उन्हों ने नजात पाई । तो जब ढेले पहाड़ बन कर हाइल ( या’नी रुकावट ) हो गए तो येह तो पहाड़ हैं ।
Istikhara ki Dua-Arbic-hindi-pdf in English Transliteration| istikhara ka very simple tareeqa
Hazrat Muhammad ﷺ Quotes in Roman Urdu, Hindi |Short Hadees Sharif | Aqwal E Zareen In Urdu | SMS|Status
Quran shareef ||surah yusuf ||quran shareef in english trancletion
हदीस में : ” शाम को एक पहाड़ दूसरे से पूछता है : क्या तेरे पास आज कोई ऐसा गुज़रा जिस ने ज़िक्रे इलाही किया ? वोह कहता है : न । येह कहता है : मेरे पास तो ऐसा शख्स गुज़रा जिस ने ज़िक्रे इलाही किया । वोह समझता है कि आज मुझ पर ( उसे ) फ़ज़ीलत है । ” येह ( फ़ज़ीलत ) सुनते ही सब लोग ब आवाजे बुलन्द कलिमए शहादत पढ़ने लगे , मुसल्मानों की ज़बान से कलिमा शरीफ़ की सदा ( Sound ) बुलन्द हो कर पहाड़ों में गूंज गई । ( मल्फूजाते आ’ला हज़रत , स . 313 , 314 )
हृदीस शरीफ़ पढ़ाने का अन्दाजे मुबारक
हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान लिखते हैं :आ’ला हज़रत (Ala Hazrat) कुतुबे हदीस खड़े हो कर पढ़ाया करते थे , देखने वालों ने हम को बताया कि खुद भी खड़े होते , पढ़ने वाले भी खड़े होते थे उन का येह फेल ( या’नी अन्दाज़ ) बहुत ही मुबारक है । ( जाअल हक़ , स . 209 , कादिरी पब्लीकेशन्ज़ )
मुद्रा नोटों
1905 में, खान ने हिजाज के समकालीन लोगों के अनुरोध पर, पेपर का उपयोग मुद्रा के रूप में उपयोग करने की अनुमति पर एक फैसले लिखा, जिसका शीर्षक किफ्ल-उल-फैक्हेहिल फेहिम फे अहकम-ए-किर्तस दरहम था।
अहमदीया
कदियन के मिर्जा गुलाम अहमद ने मुसलमानों के लिए एक अधीनस्थ पैगंबर मुहम्मद के लिए एक अधीनस्थ भविष्यद्वक्ता उम्मती नबी के रूप में वादा किए गए मसीहा और महदी के रूप में दावा किया था, जो मुहम्मद और शुरुआती सहबा के अभ्यास के रूप में इस्लाम को प्राचीन रूप में बहाल करने आए थे। खान ने मिर्जा गुलाम अहमद को एक विद्रोही और धर्मत्यागी घोषित कर दिया और उन्हें और उनके अनुयायियों को अविश्वासियों या कफार के रूप में बुलाया।
देवबंदि
जब इमाम अहमद रजा खानAhmed Raza Khan Barelvi] [ ने 1905 में Haji Yatra के लिए मक्का और मदीना का दौरा किया, तो उन्होंने अल मोटामद अल मुस्तानाद (“विश्वसनीय प्रूफ”) नामक एक मसौदा दस्तावेज तैयार किया। इस काम में, अहमद रजा ने अशरफ अली थानवी, रशीद अहमद गंगोही, और मुहम्मद कासिम नानोत्वी जैसे देवबंदी नेताओं और कफार के रूप में उनके पीछे आने वाले देवबंदी नेताओं को ब्रांडेड किया। खान ने हेजाज में विद्वानों की राय एकत्र की और उन्हें हसम अल हरमन (“दो अभयारण्यों का तलवार”) शीर्षक के साथ एक अरबी भाषा परिशिष्ट में संकलित किया, जिसमें 33 उलमा (20 मक्का और 13 मदीनी) से 34 कार्यवाही शामिल हैं। इस काम ने वर्तमान में बने बरेलवि और देवबंदि के बीच फतवा की एक पारस्परिक श्रृंखला शुरू की।
शिया
Ahmed Raza Khan Barelvi ने शिया मुस्लिमों के विश्वासों और विश्वास के खिलाफ विभिन्न किताबें लिखीं और शिया के विभिन्न अभ्यासों को कुफर घोषित किया। उसके दिन के अधिकांश शिया धर्म थे, क्योंकि उनका मानना था कि उन्होंने धर्म की ज़रूरतों को अस्वीकार कर दिया था।
काम
Ahmed Raza Khan Barelvi ने अरबी, फारसी और उर्दू में किताबें लिखीं, जिनमें तीस मात्रा के फतवा संकलन फतवा रजाविया, और कन्ज़ुल इमान (पवित्र कुरान का अनुवाद और स्पष्टीकरण) शामिल था। उनकी कई पुस्तकों का अनुवाद यूरोपीय और दक्षिण एशियाई भाषाओं में किया गया है।
ahmed raza khan barelvi translation quran pdf [कन्ज़ुल ईमान (कुरान का अनुवाद)
कन्ज़ुल इमान (उर्दू और अरबी : کنزالایمان) खान द्वारा कुरान का 1910 उर्दू पैराफ्रेज अनुवाद है। यह सुन्नी इस्लाम के भीतर हनफी़ न्यायशास्र से जुड़ा हुआ है, और भारतीय उपमहाद्वीप में अनुवाद का व्यापक रूप से पढ़ा गया संस्करण है। बाद में इसका अनुवाद अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, डच, तुर्की, सिंधी, गुजराती और पश्तो में किया गया है। इमाम अहमद रज़ा खान ने 1912 में पहली बार क़ज़ूल इमान फ़र तर्जुमा अल-कुरान के शीर्षक से प्रकाशित उर्दू में कुरान का अनुवाद किया है। कंज़ुल ईमान की मुख्य विशेषता इमाम अहमद रज़ा ने अनुवाद में अल्लाह और उसके रसूल की उच्च स्थिति को संरक्षित किया है। कंज़ुल इमाम वास्तव में इमाम अहमद रज़ा द्वारा अपने प्रिय छात्र सदरुश शरिया अमजद अली आज़मी द्वारा तय किए गए थे, जिन्होंने बाद में इसे संकलित किया और इसे प्रकाशित किया। हाल ही में कंज़ुल इमाम के संकलन की स्वर्ण जयंती भारत भर में भद्रावती , ( कर्नाटक ) और राजन की तरह मनाई गई। मूल पांडुलिपि “इदारा तहकीक़त-ए-इमाम अहमद रज़ा”, कराची के पुस्तकालय में संरक्षित है। कई विद्वानों ने “कंज़ उल-ईमान” के तुलनात्मक अध्ययन पर दर्जनों पुस्तकों का प्रबंधन और अनुपालन किया। कुछ नाम नीचे दिए जा रहे हैं.
- गुलाम रसल सईदी
- रिज़ा-उल-मुस्तफ़ा आज़मी
- कराची विश्वविद्यालय के प्रो।
- डॉ। मजीदुल्ला कादरी
- कंज़ुल ईमान का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है।
हदीसों का संकलन: इमाम अहमद रज़ा खान ने हदीसों के संग्रह और संकलन के विषय पर कई किताबें लिखी हैं। अरबी के छात्रों ने इस क्षेत्र में इमाम अहमद रज़ा खान की बुद्धि को माना है। हदीस के विज्ञान में इमाम अहमद रज़ा खान की क्षमता की सराहना करते हुए, यासीन अहमद खैरी अल-मदनी ने इमाम अहमद रज़ा खान के बारे में “हुवा इमाम-उल-मुहद्दीन” (मुहम्मददीन के नेता) के रूप में देखा है।
मुहम्मद ज़फ़र अल-दीन रिज़वी ने इमाम अहमद रज़ा खान द्वारा अपनी पुस्तकों में कई खंडों में उद्धृत परंपराओं का एक संग्रह तैयार किया है। दूसरा खंड हैदराबाद, सिंध से प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक 1992 में “साहिह अल-बिहारी” है, जिसमें 960 पृष्ठ हैं। दिल्ली के जामिया मिलिया के श्री खालिद अल-हमीदी ने हदीस साहित्य के उपमहाद्वीप के ulà के अपने डॉक्टरेट शोध प्रबंध को लिखा। इस शोध प्रबंध में लेखक ने हदीस साहित्य पर इमाम अहमद रज़ा खान की चालीस से अधिक पुस्तकों / ग्रंथों का उल्लेख किया है।
Ahmed Raza Khan Barelvi books [ इमाम अहमद रज़ा फतवा ए-रज़विया]
फ़तवा रजाविया
फतवा-ए-रज्विया या फतवा-ए-राडवियाह मुख्य आंदोलन (विभिन्न मुद्दों पर इस्लामी फैसले) उनके आंदोलन की पुस्तक है। यह 30 खंडों में और लगभग में प्रकाशित किया गया है। 22,000 पेज इसमें धर्म से व्यापार और युद्ध से शादी तक दैनिक समस्याओं का समाधान शामिल है।
हदायके बखिशिश
Ahmed Raza Khan Barelvi ने पैगंबर मुहम्मद की प्रशंसा में भक्ति कविता लिखी और हमेशा वर्तमान काल में उन पर चर्चा की। कविता का उनका मुख्य पुस्तक हिदाके बखिशिश है।
उनकी कविताओं, जो पैगंबर के गुणों के साथ सबसे अधिक भाग के लिए सौदा करती हैं, अक्सर एक सादगी और प्रत्यक्षता होती है। उन्होंने नाट लेखन के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया। उनके उर्दू दोपहर, मुस्तफा जाणे रहमत पे लखन सलाम (मुस्तफा जाने रहमत पर लाखों मरतबा सलामति हो), दया के पैरागोन) के हकदार हैं, आंदोलन मस्जिदों में पढ़े जाते हैं। उनमें पैगंबर, उनकी शारीरिक उपस्थिति (छंद 33 से 80), उनके जीवन और समय, उनके परिवार और साथी की प्रशंसा, औलिया और सालिहीं (संतों और पवित्र) की प्रशंसा शामिल हैं।
हुसामुल हरमैन
हुसमुल हरमैन या हुसम अल हरमैन आला मुनीर कुफ्र वाल मायवन (अविश्वास और झूठ के गले में हरमैन की तलवार) 1906, एक ऐसा ग्रंथ है जिसने देवबंदी, अहले हदीस और अहमदीय आंदोलनों के संस्थापकों को इस आधार पर घोषित किया कि उन्होंने किया पैगंबर मुहम्मद की उचित पूजा और उनके लेखन में भविष्यवाणी की अंतिमता नहीं है। अपने फैसले की रक्षा में उन्होंने दक्षिण एशिया में 268 पारंपरिक सुन्नी विद्वानों से पुष्टित्मक हस्ताक्षर प्राप्त किए, और कुछ मक्का और मदीना में विद्वानों से। यह ग्रंथ अरबी, उर्दू, अंग्रेजी, तुर्की और हिंदी में प्रकाशित है।
उनके अन्य कार्यों में शामिल हैं:
अर्ज़ दौलतत मक्कीया बिला मदतुल गहिबिया
अल मुट्टामदुल मुस्तानाद
अल अमन ओ वा उला
अलकॉकबटुस सहाबिया
अल इस्तिमदाद
अल फुयूज़ल मक्किया
अल मीलादुन नाबावियाह
फौज मुबेन दार हरकत ज़मीन
सुबानस सुबूह
सलुस कहें हिंदी हिंदी
अहकाम-ए-शरीयत
आज जुबतदुज़ ज़ककिया
अब्ना उल मुस्तफ़ा
तमहीद-ए-इमान
अंगोठे चुमने का मस्ला
आला हजरत एक्सप्रेस
Mashaallah bhot hi pyari jankari di hai apne allah apko jaza de ameen.