दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी

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दुरूद ए ताज हिंदी में|| दुरूद ए ताज अरबी में|| Darood e Taj in English translation
दुरूद ए ताज हिंदी में|| दुरूद ए ताज अरबी में|| Darood e Taj in English translation

दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी

 

दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी
छोटी दरूद शरीफ हिंदी में,दरूद शरीफ हिंदी में लिखा हुआ,दरूद शरीफ हिंदी मै,दुरूदे पाक हिंदी में,

 

दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी
दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी
दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी

 

اِنَّ اللہَ وَمَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوۡنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ

یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَیۡہِ وَ سَلِّمُوۡا تَسْلِیۡمًا ﴿۵۶﴾

बेशक अल्लाह त’आला और उसके फ़रिश्ते दुरूद भेजते हैं उस गैब बताने वाले नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ऐ ईमान वालो ! उन पर दूरुद और सलाम भेजो |

 

दुरूद शरीफ की फजीलत||सबसे छोटा दरूद शरीफ|| दरूद शरीफ दुआ हिंदी

 

दरूद शरीफ की फजीलत हिंदी||दरूद शरीफ दुआ हिंदी

दुरु शरीफ ऐसा खूबसूरत मौजू है जिसके बारे में जितना भी लिखो कम है इंसान दरूद शरीफ की तारीफ लिखने बैठेगा तो शायद उसकी पूरी जिंदगी भी खत्म क्यों ना हो जाए वह दुरु शरीफ की फजीलत अजमत और तारीफ बयां नहीं कर पाएगा क्योंकि दुरु शरीफ एक ऐसी दुआ है जो हुजूर अकरम मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम के लिए है .

वैसे उनको हमारी दुआ की जरूरत नहीं यह दुआ भी हम अपने ही लिए करते हैं अगर हम हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम पर दुरुद ओ सलाम भेजते हैं तो उसके बदले में अल्लाह हमारे पर रहमते nazil farmata है बरकत नाजिल फरमाता है और गुनाह को मिटा दिया जाता है दर जात को बुलंद किया जाता है .

क्योंकि अल्लाह तबारक ताला ने फरमाया दिया है के फरिश्ते और हम हमारे नबी मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम पर दुरुद ओ सलाम भेजते हैं इमान वालों तुम भी उन पर दुरुद ओ सलाम भेजा करो से साबित हो गया कि दुरुद ओ सलाम जो फरिश्ते और अल्लाह खुद भेज रहा है मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम पर तो हमारे दरूद भेजने की क्या औकात इसका साफ मतलब यह है कि जब भी हम दरूद पढ़ते हैं तो उसका sawab स्वव हमें मिलता है यानी इसमें हमारा ही bhala है.

वैसे भी हमारे आका मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ने कोई भी काम अपने लिए नहीं किया आपकी बताई हुई हर बात हर सुन्नत हमारे लिए ही काम की है और फायदे की और यह फायदा दुनिया और आखिरत दोनों का है जो इंसान नबी ए करीम सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के बताए हुए रास्तों पर चलेगा इंशा अल्लाह उसकी दुनिया और आखिरत दोनों संवर जाएंगे.

 

दुरूद ए ताज हिंदी में|| दुरूद ए ताज अरबी में|| Darood e Taj in English translation

 

दुरु शरीफ की फजीलत हिंदी

दुरूद शरीफ पर लिखी जाने वाली अज़ीम किताब “दलाइलुल खैरात” के लेखक इमाम जज़ोली रह्मतुल्लहिअलैह हैं जिन का मज़ार शरीफ मराकश में है | वह इस किताब को लिखने का सबब बयान करते हैं कि आप एक सफ़र में थे दौराने सफ़र नमाज़ का वक़्त हो गया आप वजू करने के लिए एक कुँवें पर गए जिस पर पानी निकलने के लिए कोई डोल (बाल्टी) न था.

और ना ही रस्सी | पानी बहुत नीचे था इसी सोच में थे कि अब पानी कैसे निकाला जाए | अचानक साथ ही एक घर की खडकी से एक बच्ची देख रही थी जो समझ गई कि बुजरुग किस लिए परेशान हैं उन्हें पानी की जरूरत है चुनांचे वह नीचे उतरी और कुँवें के किनारे पहुँच कर उस कुवें में अपना लू आब (थूक) फ़ेंक दिया उसी लम्हे कुँवें का पानी उछल कर किनारे आ गया और उबलने लगा |

इमाम जज़ूली रह्मतुल्लहिअलैह ने वजू कर लिया तो बच्ची से इस करामत का सबब पुछा तो उसने बताया कि यह सब कुछ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ाते पाक पर कसरत से दुरूर भेजने का फैज़ है | इमाम जज़ूली रह्मतुल्लहिअलैह ने उसी इरादा कर लिया कि मैं अपनी ज़िन्दगी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूदे पाक की एक अजीम कताब लिखूंगा और “दलाइलुल खैरात” जैसी अज़ीम तसनीफ वजूद में आ गई |

इमाम कुस्तुलानी रह्मतुल्लहिअलैह अपनी किताब अल-मवाहिबुल लादुनिया में फरमाते हैं कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ताख्लीक के बाद हज़रत हव्वा की पैदाइश हो गई तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उनका कुर्ब चाहा | अल्लाह त आ ला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि पहले इनका निकाह होगा और महर के तौर पर दोनों को हुक्म हुवा कि मिल कर बीस बीस बार मेरे महबूब खत्मुल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद पढ़ें (एक रिवायत में तीन तीन बार बयान हुवा है) चुनांचे उन्होंने बीस मर्तबा या तीन मर्तबा दुरूद पढ़ा और हज़रते हव्वा उन पर हलाल हो गयीं | (सावी , हाशिया अला तफ़सीरे जलालैन)

मवाहिबुल लदुन्या में इमाम कुस्तुलानी रह्मतुल्लहिअलैह ने रिवायत की है कि क़ियामत के दिन किसी मोमिन की नेकियां कम हो जायेंगी और गुनाहों का पलड़ा वज़नी हो जाएगा तो वोह मोमिन परेशान खड़ा होगा अचानक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मीज़ान पर तशरीफ़ लायेंगे और चुपके से अपने पास से बंद पर्चा ए मुबारक निकल कर उसके पलड़े में रख देंगे जिसे रखते ही उसकी नेकियुं का पलड़ा वज़नी हो जाएगा |

उस शख्स को पता ही नही चले गा कि यह कौन थे जो इस का बेड़ा पार कर गए वह पूछे गा आप कौन है ? इतने सखी, इतने हसीन व जमील, आपने मुझ पर करम फरमा कर मुझे जहन्नम का इंधन बचने से बचा लिया और वह परचा क्या था जो आप ने मेरे आमाल में रखा ? आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद होगा: मैं तुम्हारा नबी हूँ और यह पर्चा दुरूद है जो तुम मुझ पर भेजा करते थे |

दुरूद सलाम एक ऐसी अनोखी और बे मिस्ल इबादत है जो रिज़ा ए इलाही और क़ुर्बते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारगर जरीआ है | इस मक़बूल तरीन इबादत के ज़रिए हम बारगाहे इलाही से फ़ौरी बरकात के हुसूल और दुआ की कुबूलियत की निमत से सरफराज़ हो सकते हैं |

सहाबा ए करम रदिअल्लहु अन्हुम ने भी इसी अमले खैर के ज़रिए न सिर्फ अपने महबूब आक़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कुर्ब पाया बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम की मु अत्तर सांसों से अपनी रोहों को महकाया और गरमाया |

आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के रूखे अनवर की तजल्लियात से ही सहाबा ए कराम ने अपने मुशामे जां को मुअत्तर किया और इस तरह उन्हें सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम से ख़ुसूसी संबंध और संगत की नि अ मत नसीब हुवी अगर गौर किया जाये तो मालूम होगा कि ज़ाते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम सी संबंध ही नि अ मते ख़ास है जो आज हमें मुक़ाम व मर्तबा और इज्ज़त व शर्फ़ जैसी ला ज़वाल नि अ म तूं से नवाज़ सकती है |

दुरु शरीफ पढ़ने के कुछ इमान अफरोज़ वाकिआत

मवाहिबुल लदुन्या में इमाम कुस्तुलानी रह्मतुल्लहिअलैह ने रिवायत की है कि क़ियामत के दिन किसी मोमिन की नेकियां कम हो जायेंगी और गुनाहों का पलड़ा वज़नी हो जाएगा तो वोह मोमिन परेशान खड़ा होगा अचानक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मीज़ान पर तशरीफ़ लायेंगे और चुपके से अपने पास से बंद पर्चा ए मुबारक निकल कर उसके पलड़े में रख देंगे जिसे रखते ही उसकी नेकियुं का पलड़ा वज़नी हो जाएगा | उस शख्स को पता ही नही चले गा कि यह कौन थे जो इस का बेड़ा पार कर गए वह पूछे गा आप कौन है ? इतने सखी, इतने हसीन व जमील, आपने मुझ पर करम फरमा कर मुझे जहन्नम का इंधन बचने से बचा लिया और वह परचा क्या था जो आप ने मेरे आमाल में रखा ? आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद होगा: मैं तुम्हारा नबी हूँ और यह पर्चा दुरूद है जो तुम मुझ पर भेजा करते थे |

दुरूद शरीफ पर लिखी जाने वाली अज़ीम किताब “दलाइलुल खैरात” के लेखक इमाम जज़ोली रह्मतुल्लहिअलैह हैं जिन का मज़ार शरीफ मराकश में है | वह इस किताब को लिखने का सबब बयान करते हैं कि आप एक सफ़र में थे दौराने सफ़र नमाज़ का वक़्त हो गया

आप वजू करने के लिए एक कुँवें पर गए जिस पर पानी निकलने के लिए कोई डोल (बाल्टी) न था और ना ही रस्सी | पानी बहुत नीचे था इसी सोच में थे कि अब पानी कैसे निकाला जाए | अचानक साथ ही एक घर की खडकी से एक बच्ची देख रही थी जो समझ गई कि बुजरुग किस लिए परेशान हैं उन्हें पानी की जरूरत है चुनांचे वह नीचे उतरी और कुँवें के किनारे पहुँच कर उस कुवें में अपना लू आब (थूक) फ़ेंक दिया उसी लम्हे कुँवें का पानी उछल कर किनारे आ गया और उबलने लगा |

इमाम जज़ूली रह्मतुल्लहिअलैह ने वजू कर लिया तो बच्ची से इस करामत का सबब पुछा तो उसने बताया कि यह सब कुछ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ाते पाक पर कसरत से दुरूर भेजने का फैज़ है | इमाम जज़ूली रह्मतुल्लहिअलैह ने उसी इरादा कर लिया कि मैं अपनी ज़िन्दगी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूदे पाक की एक अजीम कताब लिखूंगा और “दलाइलुल खैरात” जैसी अज़ीम तसनीफ वजूद में आ गई |

इमाम कुस्तुलानी रह्मतुल्लहिअलैह अपनी किताब अल-मवाहिबुल लादुनिया में फरमाते हैं कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ताख्लीक के बाद हज़रत हव्वा की पैदाइश हो गई तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने उनका कुर्ब चाहा | अल्लाह त आ ला ने फरिश्तों को हुक्म दिया कि पहले इनका निकाह होगा और महर के तौर पर दोनों को हुक्म हुवा कि मिल कर बीस बीस बार मेरे महबूब खत्मुल मुरसलीन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दुरूद पढ़ें (एक रिवायत में तीन तीन बार बयान हुवा है) चुनांचे उन्होंने बीस मर्तबा या तीन मर्तबा दुरूद पढ़ा और हज़रते हव्वा उन पर हलाल हो गयीं | (सावी , हाशिया अला तफ़सीरे जलालैन)

 

इमाम शरफुद्दीन बूसरी रह्मतुल्लाहिअलैह एक बड़े ताजिर और आलिम थे, वह अरबी अदब में बहुत बड़े फाजिल और शाइर भी थे | उन्हें अचानक फालिज (पक्षाघात, स्ट्रोक) हो गया | बिस्तर पर पड़े पड़े उन्हें खियाल आया कि बारगाहे सरवरे कौनेन सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में कोई ऐसा दर्द भरा कसीदा लिखों जो दुरूद व सलाम में मामूर हो |

चुनांचे मुहब्बत व इश्क ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में डूब कर १६६ अश आर पर मुश्तमिल क़सीदा बुर्दा शरीफ जैसी शुहरत दवाम हासिल करने वाली तसनीफ ताख्लीक कर डाली | रात को आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ख़्वाब में तशरीफ़ लाये और इमाम बूसरी रह्मतुल्लहिअलैह को फ़रमाया:

बूसरी यह क़सीदा सुनाओ | अर्ज किया : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मैं बोल नही सकता फ़ालिज जदा हूँ | आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना दस्ते मुबारक इमाम बूसरी रह्मतुल्लाहिअलैह के बदन पर फेरा जिस से उन्हें शिफ़ा हासिल हो गई पस इमाम बूसरी रह्मतुल्लाहिअलैह ने क़सीदा सुनाया | क़सीदा सुन कर आप कमाले मसर्रत व ख़ुशी से दायें बायें झूम रहे थे |

एक रिवायत यह भी है कि हालते ख़्वाब में इमा बूसरी रह्मतुल्लाहिअलैह को आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चादर (बुर्दा) आता फ़रमाई | इसी वजह से इस का नाम क़सीदा ए बुर्दा पड़ गया | इमाम बुरी सुबह उठे तो फ़ालिज ख़त्म हो चूका था | घर से बहार निकले, गली में उन्हें एक मजज़ूब शैख़ अबुरिज़ा रह्मतुल्लाहिअलैह मिले और इमाम बूसरी से रह्मतुल्लाहिअलैह को फ़रमाया कि रात वाला वह क़सीदा मुझे भी सुनाओ |

इमाम बोसरी रह्मतुल्लाहिअलैह यह सुन कर हैरत जदा हो गए और पूछा आप को यह कैसे मालूम हुवा ? उन्होंने ने कहा: जब इसे हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुन झूम रहे थे मैं भी दूर खड़ा सुन रहा था | (खर्पोती, उसीदा अश शुहदा शरह क़सीदा अल- बुर्दा)

अगर हम अल्लाह त आला के अता करदा निज़ामें इबादत पर निगाह दौडायें तो हमें कोई इबादत ऐसी नही दिखाई देती जिसकी कुबूलियत का कामिल यकीन हो जबकि दुरूद व सलाम एक ऐसी इबादत और नेक अमल है जो हर हाल में अल्लाह त आ ला की बारगाह में मक़बूल है | इसी तरह तमाम इबादात के लिए मखसूस हालत, समय, स्थान और कार्यप्रणाली का होना जरूरी है |

जबकि दुरूद सलाम को जिस हाल में और जिस जगह भी पढ़ा जाए अल्लाह उसे कुबूल फरमाता है | यही वजह है आशिक़ाने मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम अपनी तमाम तर इबादत को अल्लाह त अ ला की बारगाह में पेश करते समय अपने अव्वल व आख़िर दुरूद व सलाम का जीना सजा देते हैं ताकि अल्लाह त अ ला अपने महबूब के नाम सदके हमारी बन्दगी और इबादत को कुबूल फरमा ले |

दुरु शरीफ की फजीलत और कुछ हदीस

हज़रत अबू हुरैरह रदी अल्लाहु अन्ह की रिवायत है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फ़रमाया:

वह शख्स ज़लील हुवा जिस के सामने मेरा ज़िक्र किया गया और वोह मुझ पर दुरूद नहीं भेजा |

शेरे खुदा मौला अली मुश्किलकुशा रदिअल्लहु अन्ह फरमाते हैं: हर दुवा उस वक़्त तक पर्दा ए हिजाब में रहती है जब तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम और आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के अहले बैत पर दुरूद ना भेजा जाये |

स्पष्ट है कि किस तरह दुरूद शरीफ उम्मतीयुं के लिए बख्शिश व मगफिरत, कुबूलियते दुआ, बुलंदी ए दर्जात, और कुर्ब इलाही व कुर्बे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारण बनता है इस सिसिले में मजीद और दुरूद व सलाम के फ़ज़ाइल जानें |

दुरूद शरीफ़ गुनाहों का कफ्फारा है |

दुरूद शरीफ़ से अमल पाक होता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दर्जात बुलंद होते है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने के लिए एक कीरात अज्र लिखा जाता जो कि उहद पहाड़ जितना होता है |

अल्लाह त अला के हुक्म की तामील होती है |

एक बार दुरूद शरीफ पढने वाले पर दस रहमतें नाज़िल होती है

उसके दरजात बलंद होता होते हैं |

उसके लिए दस नेकिया लिखी जाती हैं |

उस के दस गुनाह मिटाए जाते हैं |

दुआ से पहले दुरूद शरीफ पढने से दुआ की कुबूलियत का सबब है |

दुरूद शरीफ पढना नबी ए रहमत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शफ़ा अत का सबब है |

दुरूद शरीफ़ के जरिये अल्लाह बन्दे के ग़मों को दूर करता है |

दुरूद शरीफ तंग दस्त के लिए सदक़ा का जरिया है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को पैमाने ने भर भर के सवाब मिलता है |

 

Muhummad||s.a.w||reading||Ealaan e Nabuwat se pehle ke Kaarname

 

 

दुरूद शरीफ क़ज़ा ए हाजात का जरिया है |

दुरूद शरीफ अल्लाह की रहमत और फिरिश्तो की दुआ का बा इस है |

दुरूद शरीफ अपने पढ़ने वाले के लिए पाकीजगी और तहारत का बा इस है

दुरूद शरीफ पढ़ना क़ियामत के ख़तरात  से निज़ात का सबब है |

दुरूद शरीफ पढ़ने से बन्दे को भूली हुवी बात याद आ जाती है |

यह अमल बन्दे को जन्नत के रस्ते पर डाल देती है |

दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है |

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले को इस अमल की वजह से उसकी ज़ात, अमल, उम्र और बहतरी के असबाब में बरकत हासिल होती है |

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुहब्बत फ़रमाते हैं |

जो शख्श दुरूद शरीफ़ को ही अपना वजीफ़ा बना लेता है अलाह पाक उसके दुनिया और आखिरत के काम अपने ज़िम्मे ले लेता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने का सवाब गुलाम आजाद करने से भी अफज़ल है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हर किसम के खौफ़ से निज़ात पता है |

वाली ए दो जहाँ नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के ईमान की खुद गवाही देंगे

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले पर आक़ा ऐ दो जहाँ की शिफा’अत वाजिब हो जाती है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए अल्लाह त’आला की रिज़ा और रहमत लिख दी जाती है |

अल्लाह त’आला के ग़ज़ब से अमन लिख दिया जाता है |

उस की पेशानी पे लिख दिया जाता है कि यह निफ़ाक़ से बरी है |

लिख दिया जाता है यह भी कि यह दोज़ख (जहन्नम) से ब री है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को रोज़े हश्र अर्शे-इलाही के नीचे जगह दी जाएगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की नेकियौं का पलड़ा वज़नी होगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए जब वोह हौज़े कौसर पर जायेगा तब खूसूसी इनायत होगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला क़यामत के दिन सखत प्यास से अमान में जायेगा |

वह पुल सिरात से तेज़ी और आसानी से गुजर जाएगा|

पुल सीरत पर उसे नूर अता होगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला मौत से पहले अपना मुकाम जन्नत में देख लेता है |

दुरूद शरीफ़ की बरकत से माल बढ़ता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ना इबादत है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ना अल्लाह त’आ ला को हमारे सब अमलों से ज़यादा प्यारा है |

दुरूद शरीफ़ पाक मजलिसों की ज़ीनत है |

दुरूद शरीफ़ पाक तंगदस्ती को दूर करता है |

जो दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा वह रोज़े हशर मदनी आक़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सब से ज़यादा करीब होगा |

दुरूद शरीफ़ अगर पढ़ कर किसी मरहूम को बख्शा जाये तो उसे भी नफा देता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने से अल्लाह त’ आला और उसके हबीब का क़ुर्ब (क़रीबी) नसीब होता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दुश्मनों पर फतह और नुसरत हासिल होती है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का दिल ज़ंग से पाक हो जाता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले शख्श से लोग मोहब्बत करते है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला लोगों की गीबत से महफूज़ रहता है |

सब से बड़ी निअ’मत दुरूद शरीफ़ पढ़ने की यह है के उसे खवाब में प्यारे प्यारे आक़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़ियारत होती है जुज़ब अल –क़लुब में निम्मे लिखित फ़ज़ा इल बयान है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हर मजिलस में ज़ैब व ज़ीनत हासिल करता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को बरोज़े हश्र में जन्नत की रहे खुली मिलेंगी | इन्शा अल्लाह

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के बदन से खुशबू आया करेगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को हमेसा नेकी करने की खवाहिश रहा करेगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का नाम बारगाहे रिसालत में लिया जायेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला मरने तक ईमान पर काइम रहेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए ज़मीन व आसमान वालो की दुआएं वक़फ रहेंगी |

दुरूद शरीफ़ पाक पढ़ने वाले को ज़ात में अमल में उम्र में औलाद में और माल व असबाब में बरकत होगी जिसके ४ पुश्तों तक आसार ज़ाहिर होंगे |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का घर रोशन रहेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला का चेहरा पुरनूर और गुफ्तार में हलावत (मिठास) होगी |

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले की मजलिस में बेठने वाले की मजलिस में लोग खुश होगे|

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की दावत का सवाब १० गुने होगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला फ़रिश्तों का इमाम बनेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हुजुर की कौल व फअल की इत्तिबा करेगा

दुरूद शरीफ़ पाक पढ़ने वाले की कश्ती तूफानों से इं शा अल्लाह पार होगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हमेशा नेक हिदायत हासिल करेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले थोड़े ही अर्से में धनी हो जाता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला दुनिया में मारूफ हो जाता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला शख्श की जुबान से मैदाने हशर में नूर की किरणें निकलें गी |

दुरूद शरीफ़ से आँखों को नूर मिलता है |

दुरूद शरीफ़ से सेहत बरक़रार रहती है |

दुरूद शरीफ़ से आक़ा की मोहब्बत का जज़्बा और बढ़ता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को किसी की मुहताजी न होगी |

जान आसानी से निकलेगी |

क़ब्र में वुसअत होगी |

न ज़अ  का वक़त असान होगा |

तमाम काम आसान हो जायेगा (मजलिस अल मक्त बतुल मदीना के रिसाले ज़िया ए दुरूद शरीफ़ व सलाम पेज # १३ में निम्मे लिखित

फ़वा इद ब्यान है कि

मुस्लमान जब तक मुझ पर दुरूद शरीफ़ पढ़ता है फ़रिश्ते उस पर रहमत भेज ते रहते हैं अब यह इंसान की मर्ज़ी है कि कम ले या ज़ियादह |

नमाज़ के बाद हम्द व सना व दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले से कहा जाता है “दुआ मांग कबूल की जा इ गी सवाल कर दिया जायेगा” |

जिब्राइल (अलैहिस्सलाम) ने मुझ से अर्ज़ किया कि रब त ‘ आ ला फरमाता है ऐ मुहम्मद (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) क्या तुम इस बात पे राज़ी नहीं कि तुम्हारा उम्मती तुम पर एक सलाम भेजे में उस पर १० सलाम भेजों |

जिसने मुझ पर १० मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ा अल्लाह उस पर १०० रहमतें नाज़िल करता है |

जिसने मुझ पर १०० मर्तबा दुरूद शरीफ़ भेजा अल्लाह त’आला उसकी दोनों आँखों के दरमियान ये लिख देता है कि यह निफ़ाक़ और जहन्नम की आग से आजाद है और उसे बरोज़-ए-क़यामत शुहदा के साथ रखेगा |

जो मुझ पर एक दिन में १००० मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा वह उस वक़त तक नहीं मरेगा जब तक के वह अपना मुकाम जन्नत में न देख ले |

जिसने दिन और रात में शोक व मोहब्बत की वजह से मुझ पर तीन तीन मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ा तो हक़ त आला  उसके उस दिन और रात के गुनाह बक्श देता है |

बेशक तुम्हारे नाम बम शिनाख्त मुझ पर पैश किये जाते हैं लिहाज़ा मुझ पर अह सन  यानी खूबसूरत अल्फाज़ में दुरूद शरीफ़ पढ़ो |

बेशक हज़रत जिब्राइल (अलैहिस्सलाम) ने मुझे बिशारत दी कि “जो आप (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दुरूद शरीफ़ पढ़ते है अल्लाह त आला  उस पर रहमत भेजता है और जो आप (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर सलाम पढ़ता है अल्लाह उस पर सलामती भेजता है

मुझ पर दुरूद शरीफ़ की कसरत करो बेशक ये तुम्हारे लिए तहारत है |

अल्लाह पाक की खातिर आपस में मोहब्बत रखने वाले जब बाहम मिले और मुसा फहा करे और नबी पर दुरूद शरीफ़ भेजे तो उन के जुदा होने से पहले उन के अगले पिछले गुनाह बख्श दिए जाते हैं |

जिसने किताब में मुझ  पर दुरूद शरीफ़ लिखा तो जब तक मेरा नाम उस में हेगा फ़रिश्ते उस के लिए इस्ताग्फार करते रहेंगे |

ऐ लोगो बेशक क़यामत के दिन उसकी देह्सतों और हिसाब किताब से जल्द निजा त होगी जिसने दुनिया में कसरत से दुरूद शरीफ़ पढ़ा |

जिस को ये पसंद हो के अल्लाह तआला  की बारगाह में  पैश  होते वक़त अल्लाह उस से राज़ी हो तो उसे चाहिए कि वह दुरूद शरीफ़ की कसरत करे |

फ़र्ज़ हज करो बेशक उस का अज्र २० गज्वात में शिरकत करने से ज़यादा है और मुझ पर १ मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ ना उस के बराबर है |

जो मुझ पर दिन में  १०० मर्तबा  दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा अल्लाह तआला  उसकी १०० हाजत पूरी फरमाएगा |

बेशक मुझ पर दुरूद शरीफ़ पढ़ो में  तमाम जहानों के रब का रसूल हूँ |

दुरूद शरीफ़ पढ़ना तुम्हारे लिए क़यामत में नूर होगा |

चमकती रात (शब्-ए-जुमा) और रौशन दिन (जुमा का दिन) यानि जुमेरात का आफताब गुरूब होने से जुमे का सूरज डूबने तक मुझ पर दुरूद शरीफ़ की कसरत करो जो ऐसा करेगा कियामत के दिन में उस का शाफ़ेअ और गवाह बनूंगा इं शा अल्लाह |

जो जुमा के दिन मुझ पर १०० मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा तो क़ीमत के दिन जब वोह आएगा तो उसके साथ एक ऐसा नूर होगा कि अगर वह सारी  मख्लोक़ को तकसीम कर दिया जाये तो वह सब को किफ़ायत करे |

दुरु शरीफ की फजीलत हिंदी जुम्मे के दिन के लिए

जो जुमा के दिन मुझ पर ८० बार दुरूद शरीफ़ भेजेगा उसके ८० साल के गुनाह मु आफ़ होंगे इं शा अल्लाह

जिस ने जुमा के दिन मुझ पर २०० मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ा अल्लाह तआला  उस के २०० साल के गुनाह माफ़ फरमाएगा इं शा अल्लाह |

जुमेरात और शब्-ए-जुमा को जो मुझ पर १०० मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा तो अल्लाह तआला उसकी १०० हाजतें पूरी करेगा जिस में से ७० आखिरत की और ३० दुनिया के इं शा अल्लाह |

फरमाने  अब्दुल्लाह इब्न-उमर व बिन-आस (रज़ी अल्लाह त आला अन्हु) है” जो नबी ए पाक सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम पर के बार दुरूद शरीफ़ पढ़े तो अल्लाह त आला और मलाई का (फ़रिश्ते) उस पर ७० मर्तबा रहमत भेजे” |

दुरूद शरीफ पढ़ना बन्दे की हिदायत और उसकी ज़िंदा दिली का सबब है क्यूंकि जब वह पढ़ता है और आप का ज़िक्र करता है तो आप सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुहब्बत उसके दिल में ग़ालिब आ जाती है |

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले का यह इजाज भी है कि हुज़ूर सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम की बारगाह में उसका नाम पेश किया जाता है और उसका जिक्र होता है |

दुरूद शरीफ पुल सीरत पर साबित क़दमी और सलामती के साथ गुजरने का जरिया है |

एक बार दुरूद शरीफ़ पढ़ने से १० गुनाह माफ़ होते है १० नेकीयाँ मिलती हैं १० दर्जे बुलंद होते हैं १० रहमतें नाज़िल होती हैं |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की दुआ हमेशा क़ुबूल होती है

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का कंधा (शोल्डर) जन्नत के दरवाज़े पर नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) के कंधे मुबारक के साथ छु (टच) जायेगा |सुबहानल्लाह

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला कयामत के दिन सब से पहले आक़ा (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पास पहुँच जायेगा |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के सारे कामों के लिए क़यामत के दिन इनायत होगी |

दुरूद शरीफ़ पढ़ना दुनिया और आखिरत के हर दर्द व ग़म का वाहिद इलाज़ है |

दुरूद शरीफ़ रूहानियत के खजाने की चाबी है |

दुरूद शरीफ़ आशिकों की मिअराज है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ना मुनाफा ही मुनाफा है और यह मुनाफा दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को जन्नत तक पहुंचा देता है |

दुरूद शरीफ़ पाक अल्लाह त आ ला की नाराज़गी से बचने का आसान अमल है |

दुरूद शरीफ़ एक ऐसी इबादत है जिसका फ़ायदा उसी की तरफ लौट ता है जो इसको पढ़ता है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ ना ऐसा है कि जैसा अपनी ज़ात के लिए दुआ करना है |

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला रूहानी तौर पर तर्बियते मुहम्मद (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) में होता है|

दारूत की कसरत करना अहल – इ-सुन्नत की अलामत है |

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