Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2024 ||रमजान ||शहरी

Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2024||रमजान ||शहरी

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Itikaf ki dua in hindi

Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2019 ||रमजान ||शहरी

Assalamu Alaikum Warahmatullahi Wabarakatuh आज हम itikaf के बारे में बात करेंगे इतिकाफ करने का बहुत सवाब है हमारे आका मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम हर रमजान को एक काम जरूर किया करते थे आप पहले Ashre ka इतिकाफ करते फिर दूसरे Ashre ka itikaf करते फिर तीसरे का भी इतिकाफ करते तीसरे Ashre ka का itikaf आप ज्यादा किया करते तीसरे Ashre का itikaf करना सुन्नत है!

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रमजान की तारीफ|| रमजान 2019|| रमजान मुबारक

जब अल्लाह किसी मुसलमान को पसंद फरमाता है तो उसे हिदायत की तरफ बुलाता है और अपने वह काम लेता है जो उसे पसंद हो Ladke Ne kaam mein se ek kaam itikaf bhi hai जब बंदा सम्मान दुनिया भी काम छोड़कर सिर्फ अल्लाह की इबादत में लग जाता है तो उसे इतिहास कहते हैं इतिकाफ के दौरान अल्लाह के ही काम किए जाते हैं दुनिया भी कोई काम नहीं किया जाता इतिकाफ का एक सही तरीका है और इतिकाफ करने से पहले दुआ पढ़ी जाती है इतिकाफ तीन (प्रकार) किस्म के होते हैं. 1-Wajib- 2Sunnat-e-Mu’akkadah-3-Mustabab or Sunnat-e-Ghair Mu’akkadah

10 दिन का itikaf

सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम रमजान की आखिरी आश्रय का itikaf kiya करते थे मोमिनीन हज़रत सैयदना आयशा सिद्दीका रजि अल्लाह ताला अनु फरमाते हैं कि मेरे सरताज सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम रमजान मुबारक के आखिरी अक्षरा यानी आखिरी 10 दिन kayam फॉर्मआया करते थे यहां तक कि अल्लाह ने आला ताला अलैहि वसल्लम को वफाt फरमाne के बाद आप ki biviyan itikaf करती rahi.

You too itikaf ke beshumar Faisal hai hi Magar Diwanon ke liye Tu Itni hi baat Kafi hai ki Ashray Aakhir ka itihas Sunnat hai ya Tasveer hi zoq afza hai ki hum Pyare Sarkar Sallallahu Ala Wasallam ki Pyari aur Neha ki Sunnat Ada kar rahe hain.

1 दिन के itikaf की फजीलत

जो सिर्फ 1 दिन मस्जिद के अंदर एक लाश के साथ इतिकाफ कर ले उसके लिए भी बहुत ही शराब कि विचारक हैं हम बेकसों के अनुसार अल्लाह ताला वसल्लम ने फरमाया जो शख्स अल्लाह की खुशबू दी के लिए 1 दिन का एक काम करेगा अल्लाह ताला उसके और जहन्नम के दरमियान 30 के घायल कर देगा जिनकी मुसाफत आसमान और जमीन के फासले से भी ज्यादा होगी नंबर 21 और जगह इरशाद फ़रमाया जो शक्स खालिस नियत से बगैर लिया और विला ख्वाहिशें शोहरत एक दिन इतिहास वजह लाएगा उसको हजार रातों की सर्वे बेदारी का सवाब मिलेगा और उसके और दोजक के दरमियान का फैसला 500 बरस की राह होगा इंशा अल्लाह

थोड़ी देर itikazf का सुबाब

1- Mohummad Mustafa sallallahu allehi wasallim ne फ़रमाया जो शक्स मस्जिद में मगरिब से लेकर ईशा की नमाज तक यानी इतिकाफ की नियत से रहे नमाज और कुरान ए मजीद की तिलावत के सिवा koi काम ना करें यानी किसी से बात ना करें तो अल्लाह ताला पर लाजिम है कि अपने कर्म से उसके काम करने वाले के लिए जन्नत में महल तैयार करें .

2- हजरत ए सैयदना इब्ने अब्बास रजि अल्लाह ताला अनु से रिवायत है किस शहंशाह ए मदीना सल्लल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम ने फरमाया एक काम करने वाला गुनाहों से महफूज हो जाता है और उसकी तमाम ने किया इसी तरह लिखी जाती रहती है जैसे वह इसको खुद करता रहा हो

 Mishkat Shareef

इतिकाफ करने का एक बहुत बड़ा फायदा यह भी है कि जितने दिन इतिकाफ में रहेगा गुनाहों से महफूज रहेगा और जो गुना वह बाहर कर रहा था उससे भी महफूज रहेगा लेकिन या अल्लाह की रहमत है कि बाहर रहकर जो नहीं किया वह किया करता था इतिहास की हालत में अगर छेद हो उनको अंजाम ना दे सकेगा फिर भी वह उसके नाम आए हमारे में बाद बदस्तूर लिखी जाती रहेंगी और उसे उनका स्वभाव भी मिलता रहेगा मसलन कोई इस्लामी भाई मरीजों की आदत या तीमारदारी करता था यह गरीबों की मदद करता था या सुन्नतों किए इस समय में जाया करता था !

और एक आपकी वजह से यह काम नहीं कर सका तो वह उन्हें क्योंकि सब आप से महरूम नहीं होगा बल्कि उसको बदस्तूर इन्हें क्यों का ऐसा ही सबा मिलता रहेगा जैसे वह खुद को अंजाम देता रहा हूं चंद्रदीप में माहे रमजान मुबारक के आखिरी तक नहीं है जब भी अप करें यह फजीलत हासिल होगी और रमजान उल मुबारक की तो बात ही क्या है एक हदीस पाक में barid हुआ है

300 शहीदों का सवाब

सरकारे मदीना सल्लल्लाहो ताला ले वाले वसल्लम ने फ़रमाया जो शक्स हा लिसन रमजान शरीफ में 1 दिन और एक रात इतिकाफ करे तो उसको 300 शहीदों का सवाब मिलेगा

दो हज aur दो उम्रो का सवाब

एक और मकान पर सरकार सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम ने फरमाया जिस ने रमजान उल मुबारक में 10 दिन का इतिहास किया तो ऐसा है जैसे दोस्तों मेरे किए अबे कहां से मुतालिक मस्जिद चंद हदीस ए मुबारक पेश की जाती है हज़रत सैयदना ना प्यार दे अल्लाह ताला अनु कहते हैं कि हज़रत सैयदना अब्दुल्ला बिन उमर फरमाते हैं कि मदीने के सुल्तान तो लाता नाले वाले वसल्लम रमजान की आखिरी अरे काहे का फॉर्म आया करते थे और हजरत ए ना फिर रजि अल्लाह ताला अनु फरमाते हैं कि हज़रत अब्दुल्ला बिन उमर रजि अल्लाह ताला अनहो ने मुझे मस्जिद में वह जगह भी दिखाई जाने वाले वसल्लम फरमाते थे

(मुस्लिम)

शबे कद्र की तलाश में itikaf

हजरत ए सैयदना अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह ताला अनु फरमाते हैं कि सरकारे मदीना सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम ने 1 तुर्की हमें के अंदर रमजान उल मुबारक के पहले अश्वेत आए थे का फॉर्म आया फिर दरमियानी आश्रय का फिर सरे अखबार निकाला और फरमाया मैंने पहले आश्रय का इतिहास शबे कद्र की तलाश करने के लिए किया!

फिर इसी मकसद के तहत दूसरे आश्रय का इतिहास भी किया फिर मैंने पास अल्लाह ताला की तरफ से यह इत्तला दी गई शबे कद्र आखरी आश्रय में है लिहाजा जो शख्स मेरे साथ ऐसे काम करना चाहे वह आखरी आश्रय का इतिकाफ करें इसलिए कि मुझे शबे कद्र दिखाई गई थी फिर इसे भुला दिया गया और अब मैंने यह देखा कि मैं शबे कद्र की सुबह को गीली मिट्टी में सजदा कर रहा हूं लिहाजा जब तुम शबे कद्र को आखरी तक रातों में तलाश करो हजरत अबू सईद अल्लाह ताला अनु फरमाते हैं कि अब बारिश हुई और मस्जिद शरीफ की छत टपकने लगे 21 रमजान की सुबह को मेरी आंखों ने मीठे आका सल्लल्लाहो ताला वसल्लम को इस हालत में देखा कि आप सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम की पेशानी मुबारक पर पानी वाले गीली मिट्टी का था

(मिश्कत]

रमजान उल मुबारक में इतिकाफ करने का सबसे बड़ा मकसद शबे कद्र की तलाश है और राजीव यही है कि शबे कद्र रमजान उल मुबारक के आखिरी 10 दिनों की ताक रातों में होती है इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि उस दिन शबे कद्र 21वीं सदी मगर यह फरमाना की आखिरी अशरा की ताक रातों में इसको तलाश करो इस बात को जाहिर करता है कि शबे कद्र हर साल बदलती रहती है

यानी तभी 21 रिशब कभी 23 मिशप कभी 25 ऋषभ कभी 27 भी तो कभी 19 रिशब लिहाजा मुसलमान को शबे कद्र की आदत हासिल करने के लिए आखिरी आखिरी तक आप की तरफ दिलाई गई है क्योंकि क्योंकि एक आप 10 दिन मस्जिद में ही पड़ा रहता है और इन 10 दिन में कोई भी एक रात शबे कद्र होती है

 यह सब मस्जिद में कामयाब हो जाता है और खास नुक्ता इस हदीस ए पाक से यह मालूम हुआ कि हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम पर भी सजदा कर लिया करते थे लिहाजा बिना फाइल जमीन पर सजदा करना सुन्नत हुआ मेरे प्यारे आका सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम की नूरानी परेशानी ख़ाक से अलविदा हो गई अल्लाह हू अकबर हमारे सरकार सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम किस कदर सादगी पसंद है यकीनन अल्लाह के हुजूर सजदे में अपनी परेशानी हाथ पर रखना और परेशानी का का बलोदा हो जाना बहुत बड़ी आजजी hi.

हर साल की इबादत का सवाब

हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम फरमाने अली शान है जो शख्स रमजान उल मुबारक के आखिरी दिन सिडको एक लाश के साथ इतिकाफ करेगा अल्लाह तबारक व ताला उसके नाम आया माल में हजार साल की आदत दर्द फर्म आएगा और क्यामत के दिन उसको अपने (Arsh) के साए में जगह देगा!

Itikaaf Niyat in English

With the Blessed Name of Allah have I entered (into the Masjid) and in Him have I placed my trust, and I have made the intention of the Sunnah of I’itikaf. O Allah open Your doors of Mercy upon me.”

Itikaf (Aetikaf) Niyat in Arabic

بسم الله دخلت و عليه توكلت و نويت سنت الاعتكاف۔ اللهم افتح لي ابواب رحمتكك

Itikaf Niyat English Transliteration

Bismillahi Dakhaltu Wa’Alayhi Tawakkaltu Wanawaytu Sunnatul I’tikaaf

Niyat For Nafl I’tikaf

Nawito sunnat-ul-itikaf

NAWAYTUL I`TIKFA MA DUMTU FIL MASJID

I intend making I’tikaf for Allah, the High,
the Glorious, as long as I remain in the Masjid.

इतिकाफ की तारीफ

मस्जिद में अल्लाह के लिए बनी अतिथि करना इतिकाफ है और इसके लिए मुसलमान Akil और अनामत है जो janabat Heaz or nifas से पाक होना शर्त है boolug shart नहीं बल्कि नाबालिक जो tameez रखता है अगर वह नियत इतिकाफ में मस्जिद में ठहरे तो यह तक आप सही है इतिकाफ के lugvi माना है धरना मारना मतलब की muattaqif अल्लाह की बारगाह में इश्क इबादत पर कमर बस्ता होकर धरना मारकर पड़ा रहता है उसकी यही धुन होती है कि किसी तरह उसका परवरदिगार राजी हो जाए.


अब तो बनी के दर पर बिस्तर जमा दिया है

HAZRAT_E_Ataa khurasani रहमतुल्लाहि ताला अनहो फरमाते हैं कि Muattakif की मिसाल उस शख्स की सी है जो अल्लाह ताला के दर पर आ पड़ा हो और यह कह रहा हो या अल्लाह जब तक तू मेरी मकसद नहीं फरमा देगा मैं यहां से नहीं चलूंगा.

हमसे फकीर भी अब फेरी को उठते होंगे
अब तो gani के दर पर बिस्तर जमा दिए
हैं

Meaning of Allahu akbar ||meaning of Azan in hindi

इतिकाफ को करने से पहले आपको यह समझ लेना चाहिए कि आपको कौन Sa इतिकाफ करना है इतिकाफ की तीन किस्में है!

Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2024 ||रमजान ||शहरी
Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2019 ||रमजान ||शहरी


एतिकाफ़ की तीन क़िस्मे हैं – Three types of Itikaf

वाजिब– एतिकाफ़ की मन्नत मानने से एतिकाफ़ वाजिब हो जाता है इसके लिये दिल के इरादे के साथ-साथ ज़ुबान से भी कहना ज़रूरी है सिर्फ़ दिल में इरादे से वाजिब नहीं होगा। मान लीजिए आपने किसी वजह से कोई मन्नत मांगी और कहा कि मैं ऐसा हो जाने पर इतिकाफ करूंगा या करूंगी तो आपका इतिकाफ करना वाजिब हो गया!

सुन्नते मुअक्कदा– रमज़ान के आख़िर के दस दिन में एतिकाफ़ करना सुन्नते मुअक्कदा है । यह एतिकाफ़ सुन्नते किफ़ाया है यानि अगर सब छोड़ दें तो सबसे इसके बारे में मुतालबा होगा और शहर में एक ने कर लिया तो सब इस ज़िम्मेदारी से आज़ाद हो गये । इस एतिकाफ़ में बीस रमज़ान को सूरज डूबते वक़्त से ईद का चाँद होने तक एतिकाफ़ की नीयत से दिन-रात मस्जिद में रहना ज़रूरी है

Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2024||रमजान ||शहरी
Itikaf|| इतिकाफ की दुआ हिंदी|| इंग्लिश|| उर्दू|| इतिकाफ का तरीका ||itikaf 2019 ||रमजान ||शहरी
 हमारे आका मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम आखिर के 10 अंक दिनों में इतिकाफ फरमाया करते 10 दिनों में ही शबे कद्र की भी विशारद दी गई yeah 10 din bahut jyada Afzal aur Allaa hai

इन 10 दिनों में की गई इबादत अल्लाह ताला को बेहद पसंद है 20 बेरो से से लेकर चांद रात तक यानी जब चांद दिख जाए Eid ka तब आप इतिकाफ मुकम्मल कर कर अपने घर वापस आ सकते हैं!

मुस्तहब/सुन्नते ग़ैर मुअक्कदा– इन दोनों के अलावा अगर एतिकाफ़ किया जाये वह मुस्तहब या सुन्नते ग़ैर मुअक्कदा है।

एतिकाफ़ के लिये ज़रूरी मसाइल – Itikaf ke Masail

सबसे ज़्यादा अफ़ज़ल एतिकाफ़ मस्जिद हरम शरीफ़ में है, फिर मस्जिद नबवी शरीफ़ में, फिर मस्जिद अक़सा में, फिर उस मस्जिद में जहाँ बड़ी जमाअत होती हो।

एतिकाफ़ के लिए जामा मस्जिद होना शर्त नहीं बल्कि मस्जिद-ए-जमाअत में भी हो सकता है। मस्जिदे जमाअत वह है जिसमें इमाम व मुअज़्ज़िन मुक़र्रर हों, चाहे उसमें पाँचों वक़्त की नमाज़ नहीं होती । वैसे आसानी के तौर पर हर मस्जिद में एतिकाफ़ सही है चाहे वह मस्जिद-ए-जमाअत न भी हो।

औरत को मस्जिद में एतिकाफ़ मकरूह है बल्कि वह घर में ही एतिकाफ़ करे मगर उस जगह करे जो उसने नमाज़ पढ़ने के लिए मुक़र्रर कर रखी हो।

अगर औरत ने नमाज़ के लिए कोई जगह मुक़र्रर नहीं कर रखी है तो घर में एतिकाफ़ नहीं कर सकती अलबत्ता अगर उस वक़्त यानि जबकि एतिकाफ़ का इरादा किया किसी जगह को नमाज़ के लिए ख़ास कर लिया तो उस जगह एतिकाफ़ कर सकती है।

एतिकाफ़-ए-मुस्तहब के लिए न रोज़ा शर्त है न उसके लिए कोई ख़ास वक़्त मुक़र्रर बल्कि जब मस्जिद में एतिकाफ़ की नीयत की जब तक मस्जिद में है एतिकाफ़ से है, मस्जिद के बाहर चला गया तो एतिकाफ़ ख़त्म हो गया।

जब भी मस्जिद में जाए एतिकाफ़ की नीयत करलें। नीयत करते वक़्त यह कहे ‘‘नवैतु सुन्नतलएतिकाफ़’’ — और उसके बाद थोड़ी देर कुछ इबादतभी ज़रूर करे और इसके बाद जितनी देर मस्जिद मेंरहेगा उतनी देर इबादत का सवाब पाएगा।

एतिकाफ़-ए-सुन्नत यानि वह एतिकाफ़ जो रमज़ान की आख़िरी दस तारीख़ों में किया जाता है उसमें रोज़ा शर्त है। लिहाज़ा अगर किसी मरीज़ या मुसाफ़िर ने एतिकाफ़ तो किया मगर रोज़ा न रखा तो सुन्नत अदा न हुई बल्कि नफ़्ल हुआ।

मन्नत के एतिकाफ़ में भी रोज़ा शर्त है यहाँ तक कि अगर एक महीने के एतिकाफ़ की मन्नत मानी और यह कहा कि रोज़ा नहीं रखेगा जब भी रोज़ा रखना वाजिब है।

अगर रात के एतिकाफ़ की मन्नत मानी तो यह मन्नत सही नहीं कि रात में रोज़ा नहीं हो सकता और अगर इस तरहकहा कि “एक दिन रात का मुझ पर एतिकाफ़ है” तो यह मन्नत सही है और अगर आज के एतिकाफ़ की मन्नत मानी और खाना खा चुका है तो मन्नत सही नहीं।

Allah||Allah ke 99 Naam||99Beautifull Name Of Allah in Hindi

एतिकाफ़-ए-वाजिब और एतिकाफ़-ए-सुन्नत में मस्जिद से बग़ैर उज़्र निकलना हराम है, निकले तो एतिकाफ़ टूट जायेगा चाहे भूलकर ही निकला हो। इसी तरह औरत ने मस्जिद-ए-बैत (घर में जो जगह नमाज़ के लिए ख़ास कर ली हो) में एतिकाफ़े वाजिब या सुन्नत किया तो बग़ैर उज़्र वहाँ से नहीं निकल सकती अगर वहाँ से निकली चाहे घर ही में रही एतिकाफ़ जाता रहा।

एतिकाफ़ करने वाले के लिये मस्जिद से निकलने के दो उज़्र हैं एक हाजित–ए–तबई जो मस्जिद में पूरी नहीं हो सकती जैसे पाख़ाना, पेशाब, इस्तिन्जा, वुज़ू और ग़ुस्ल।

ग़ुस्ल/वुज़ू के लिये बाहर जाने की यह शर्त है कि मस्जिद में इनका इन्तिज़ाम न हो। मस्जिद में वुज़ू/ग़ुस्ल कर सकते हों तो बाहर जाने की इजाज़त नहीं।

दूसरा उज़्र हाजित–ए–शरई है जैसे जुमा की नमाज़ के लिए या अज़ान कहने के लिए मीनार पर जाना।

क़ज़ा-ए-हाजित यानि पेशाब-पाख़ाने को गया तो पाक होकर फ़ौरन चला आये ठहरने की इजाज़त नहीं और अगर मोतकिफ़ के दो मकान हैं एक पास दूसरा दूर तो पासवाले मकान में जाये बाज़ मशाइख़ फ़रमाते हैं दूर वाले में जायेगा तो एतिकाफ़ फ़ासिद हो जायेगा।

दिन में भूल कर खा लेने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होता।

एतिकाफ़ के दौरान डूबने या जलने वाले को बचाने के लिये , गवाही देने के लिये , जिहाद में जाने के लिये,  मरीज़ की इयादत या नमाजे़ जनाज़ा के लिए मस्जिद से बाहर गया तो इन सब सूरतों में एतिकाफ़ फ़ासिद हो गया।

अगर मन्नत मानते वक़्त यह शर्त कर ली कि मरीज़ की इयादत,जनाज़े की नमाज़ या इल्म की मजलिस में हाज़िर होगा तो अब इनके लिए जाने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होगा। मगर ख़ाली दिल में नीयत करना काफ़ी नहीं, ज़ुबान से कहना ज़रूरी है।

पाख़ाना, पेशाब के लिए गया था क़र्ज़ा माँगने वाले ने रोक लिया एतिकाफ़ फ़ासिद हो गया।

एतिकाफ़ करने वाले को जिमा करना, औरत का बोसा लेना, छूना या गले लगाना हराम है इससे एतिकाफ़ फ़ासिद हो जायेगा।

गाली-गलौच, झगड़ा करने से एतिकाफ़ फ़ासिद नहीं होता मगर बे-नूर व बे-बरकत हो जाता है।

एतिकाफ़ करने वाले को मस्जिद में ही खाना, पीना और सोना चाहिये इन कामों के लिए मस्जिद से बाहर गये तो एतिकाफ़ ख़त्म, मगर खाने, पीने में यह एहतियात लाज़िम है कि मस्जिद में खाना या पानी गिरने से गंदगी न हो।

एतिकाफ़ के अलावा किसी को मस्जिद मेंखाने,पीने, सोने की इजाज़त नहीं, अगर ऐसा करना चाहे तो एतिकाफ़ की नीयत करके मस्जिद में जाये और नमाज़ पढ़े या ज़िक्रे इलाही करे फिर यह काम कर सकता है। इस पर ज़रा ध्यान दें आजकल लोगों में मस्जिद का एहतराम बिल्कुल ख़त्म होता जा रहा है। मस्जिद में बैठकर इधर-उधर की बातें करते रहते हैं, बेधड़क आकर सो जाते हैं यह सब ग़लत है। इससे बचें।

एतिकाफ़ करने वाले न तो चुप ही रहें और न कोई बुरी बात मुँह से निकाले, इबादत की नीयत से या सवाब समझकर चुप रहना मकरूहे तहरीमी है।

एतिकाफ़ करने वाले को चाहिये कि चुप रहने या बात करने के बजाय ज़्यादा वक़्त क़ुरआन मजीद की तिलावत, हदीस शरीफ़ की क़िरात, दुरूद शरीफ़ की कसरत, इल्मे दीन की किताबें वग़ैरा पढ़ने या पढ़ाने में लगाए।

एतिकाफ़ के मुताल्लिक़ कुछ अहादीस

रसूलुल्लाह रमज़ान के आख़िर अशरा (यानि रमज़ानके आख़िरी दस दिन) का एतिकाफ़ फ़रमाया करतेथे। (सहीहैन में उम्मुल मोमिनीन सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा से मरवी)

एतिकाफ़ करने वाले पर सुन्नत यह है कि न मरीज़की इयादत को जाये, न जनाज़े में हाज़िर हो, नऔरत को हाथ लगाये और न उससे मुबाशरत करेऔर न कुछ ख़ास ज़रूरतों के अलावा किसी दूसरीज़रूरत के लिए मस्जिद के बाहर जाये मगर उसहाजत के लिए जा सकता है जो ज़रूरी है औरएतिकाफ़ बग़ैर रोज़े के नहीं और एतिकाफ़जमाअतवाली मस्जिद में करे। (अबू दाऊद उन्हीं से रिवायत)

रसूलुल्लाह  ने एतिकाफ़ करने वाले  के बारे मेंफ़रमाया कि वह गुनाहों से बाहर रहता है औरनेकियों से उसे इस क़द्र सवाब मिलता है जैसे उसनेतमाम नेकियाँ कीं। (इब्ने माजा इब्ने अब्बास से रावी )

हुज़ूर अक़दस ने फ़रमाया जिसने रमज़ान में दसदिनों का एतिकाफ़ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हजऔर दो उमरे किये। (बैहक़ी इमाम हुसैन से रावी)

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