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Muslim personal law board kya
अस्सलाम वालेकुम व रहमतुल्ला हे व बरकातहू आज हम जिस मुद्दे पर बात करने वाले हैं बहुत बड़ा ही अहम मुद्दा है क्योंकि यह मुसलमान की शरीयत का मुद्दा है मुसलमान जो भी होगा वह शरीफ का पाबंद होगा
मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत पर आधारित है। मोटे तौर पर, शरीयत को कुरान के प्रावधानों के साथ ही पैगंबर मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम की शिक्षाओं और प्रथाओं के रूप में समझा जा सकता है।
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मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वाले वसल्लम जो भी करते अल्लाह के हुक्म से करते हैं जो भी कहते अल्लाह के हुक्म से कहते आपने कभी भी अपनी तरफ से एक अल्फाज भी दुनिया के सामने नहीं बोला आपका हर अल्फाज आपकी की हुई हर बात कुरान के बारे में बताई हुई हर बात शरीयत है .
जो Allah Thala की तरफ से मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के ऊपर कुरान की शक्ल में नाजिल हुआ कुरान में अल्लाह ताला ने हर मस्ले का हल बता रखा है ke कौन से गुना (gunha )galti की क्या सजा है और कौन थी नेकी का क्या बदला है और इंसान को किस तरीके का जीवन जीना चाहिए हर तरीके के कानून कुरान में अल्लाह ताला ने अपने बंदों के लिए बता दिया है.
मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम उन्हीं बातों को फॉलो करते थे और आपने जो भी hume यानी मखलूक को बताया वही शरीयत है और मुसलमान उसी शरीयत पर चलते हैं आज भी चलते हैं और कयामत तक चलते ही रहेंगे क्योंकि जो मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ने फरमाया है वह न कभी बदला था ना बदला है ना कभी बदलेगा वही शरीयत है !
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 भारत के सभी नागरिकों को ‘कानून का समान संरक्षण’ देता है, लेकिन जब बात व्यक्तिगत मुद्दों ( शादी, तलाक, विरासत, बच्चों की हिरासत) की आती है तो मुसलमानों के ये मुद्दे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आ जाते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ की शुरुआत साल 1937 में हुई थी।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना किसने की
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ? कैसे हुई इसकी शुरुआत? भारतीय मुस्लिम महिलाओं को वैवाहिक स्थिति की समानता देने में सरकार को क्यों करना पड़ा है कठिनाइयों का सामना? इस रिपोर्ट में इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की गई है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना किसने की
कैसे बनी शरीयत
अरब में इस्लाम के बतौर धर्म आने से पहले, वहां एक कबीलाई सामाजिक संरचना थी। कबिलों में जो नियम और कानून थे वे लिखे हुए नहीं थे। ये कानून समय के साथ और जब समाज ने बदलाव की जरूरत महसूस की तो बदलते गए। सातवीं सदी में मदीना में मुस्लिम समुदाय की स्थापना हुई और फिर जल्द ही आस-पास के इलाकों में यह फैलने लगा। इस्लाम की स्थापना के साथ ही कबीलाई रीति रिवाजों पर कुरान मे लिखे अल्लाह के Sandesh logo par wajib हो गई। कुरान में लिखे और अलिखित रीति रिवाज शरीयत के तौर पर जाने जाते हैं। इस्लामिक समाज शरीयत के मुताबिक चलता है। इसके साथ ही शरीयत हदीस ( पैगंबर के काम और शब्द) पर भी आधारित है। मूल रूप से, वे समाज में व्यावहारिक समस्याओं के लिए बहुत व्यापक और सामान्य समाधान थे।
Meaning|| of inshaallah|| in Hindi || English
नबी करीम सल्लल्लाहो ताला वसल्लम के पास जो भी अपना मतला लेकर आता आप उसका बड़ी आसानी से हल कर देते हैं लोग उसी को शरीयत मानते हुजूर के किए गए फैसले भी शरीयत के अंदर ही आते हैं नबी करीम सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ने जो भी बात कह दी वह पत्थर की लकीर है और कयामत तक कभी नहीं बदलेगी मुसलमान उसी को सुन्नत मानते हैं सुन्नत पर अमल करना मुसलमानों का परम कर्तव्य बन गया मुसलमान अपने नबी की बताई गई हर बात को फॉलो करते हैं और उसी पर अमल करते हैं जिससे उन्हें ने किया मिलती हैं मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो ताला वसल्लम ने जो कहा और किया और जो कुरान से बताया वह सभी शरीयत के अंदर आता है!
समय के साथ कैसे विकसित हुई शरीयत ?
यह बहस करना एक बड़ी गलती होगी कि कई सदियों से शरीयत में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पैगंबर के जिंदा रहते हुए कुरान में लिखे कानून पैगंबर और उनके समाज के सामने आ रही समस्याओं के समाधान के लिए थे। उनकी मौत के बाद कई धार्मिक संस्थानों और अपने न्यायिक व्यवस्था में शरीयत लागू करने वाले देशों ने समाज की जरूरतों के मुताबिक इन कानूनों की व्याख्या की और इन्हें विकसित किया। इस्लामिक लॉ की चार संस्थाएं हैं, जो कि कुरान की आयतों और इस्लामिक समाज के नियमों की अलग-अलग तरह से व्याख्या करते हैं। चार संस्थाएं (हनफिय्या, मलिकिय्या, शफिय्या और हनबलिय्या) चार अलग-अलग सदियों में विकसित हुई। मुस्लिम देशों ने अपने मुताबिक इन संस्थाओं के कानूनों को अपनाया
काशीपुर की शायरा बानो द्वारा कोर्ट में ‘तीन तलाक’ को चुनौती दिए जाने के बाद भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ एक बार फिर चर्चा में आ गया थाइस्लामी कानूनी मानदंडों के मुताबाकि महिलाओं की सुरक्षा संबंधित मुद्दा पिछली बार साल 1985 में उठा था। उस वक्त का शाह बानो केस काफी चर्चित हुआ था
मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत पर आधारित है। मोटे तौर पर, शरीयत को कुरान के प्रावधानों के साथ ही पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं और प्रथाओं के रूप में समझा जा सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 भारत के सभी नागरिकों को ‘कानून का समान संरक्षण’ देता है, लेकिन जब बात व्यक्तिगत मुद्दों ( शादी, तलाक, विरासत, बच्चों की हिरासत) की आती है तो मुसलमानों के ये मुद्दे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आ जाते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ की शुरुआत साल 1937 में हुई थी।
क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ? कैसे हुई इसकी शुरुआत?
भारतीय मुस्लिम महिलाओं को वैवाहिक स्थिति की समानता देने में सरकार को क्यों करना पड़ा है कठिनाइयों का सामना? इस रिपोर्ट में इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की गई है।
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भारत में कैसे लागू हुआ मुस्लिम पर्सनल लॉ?
भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट साल 1937 में पास हुआ था। इसके पीछे मकसद भारतीय मुस्लिमों के लिए एक इस्लामिक कानून कोड तैयार करना था। उस वक्त भारत पर शासन कर रहे ब्रिटिशों की कोशिश थी कि वे भारतीयों पर उनके सांस्कृतिक नियमों के मुताबिक ही शासन करें। तब(1937) से मुस्लिमों के शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक विवादों के फैसले इस एक्ट के तहत ही होते हैं। एक्ट के मुताबिक व्यक्तिगत विवादों में सरकार दखल नहीं कर सकती।
क्या भारत में पर्सलन लॉ मुसलमानों के लिए ही है ?
भारत में अन्य धार्मिक समूहों के लिए भी ऐसे कानून बनाए गए हैं। देश में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कोड है। उदाहरण के तौर पर 1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, इसके तहत हिंदू, बुद्ध, जैन और सिखों में विरासत में मिली संपत्ति का बंटवारा होता है। इसके अलावा 1936 का पारसी विवाह-तलाक एक्ट और 1955 का हिंदू विवाह अधिनियम इसके उदाहरण हैं।
क्या भारत में शरीयत एप्लिकेशन एक्ट में बदलाव नहीं हो सकता ?
मुसलमानों की शायरियां खुद अपने आप की बनाई हुई नहीं है यह sharyat Quran ke Madhyam se Navya Kareem ki Zubaan se a Nikali Hue Alfaaz se a aur Navya Kareem ke kiye Gaye faislo Se Milkar bani hai Jo chede Na Kabhi Badli thi na Badli Hai Aur Qayamat Tak Na badlegi Har EK Sachcha Musalman ishwarpura Amal Karta Tha Amal karta hai hi aur Inshallah Amal Karta rahega
इसलिए यह सोचना भी बेकार है कि शर्यत में कोई बदलाव हो सकता है .
खैरियत नहीं कभी कोई बदलाव नहीं हो सकता इस्लाम धर्म में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं उतनी और किसी धर्म में महिलाएं सुरक्षित नहीं अगर महिलाएं शर्यत की पावन हो पर्दे की पावन दो तो उनके साथ कुछ भी ऐसा गलत मामला नहीं होगा जो आजकल हो रहे हैं शरीयत ने हरेक के हक बताएं रोटी के हक पड़ोसी के हक रिश्तेदारों के साथ मां बाप की है बीवी के हक औलाद के हक लोगों ने सिर्फ तीन तलाक का मामला सामने उठा रखा है पूरी sharyat पढ़ कर तो देखिए हर शरीयत पढ़ने वाला सच्चा मुसलमान शर्यत को मानने पर मजबूर हो जाएगा क्योंकि शरीयत में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी है .
जो गलत Ho शरीयत एक्ट की प्रासंगिकता पर पहले भी कई बार बहस हो चुकी है। पहले ऐसे कई मामले आए हैं, जब महिलाओं के सुरक्षा से जुड़े अधिकारों का धार्मिक अधिकारों से टकराव होता रहा है। इसमें शाह बानो केस प्रमुख है1985 में 62 वर्षीय शाह बानो ने एक याचिका दाखिल करके अपने पूर्व पति से गुजारे भत्ते की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी गुजारे भत्ते की मांग को सही बताया था, लेकिन इस फैसले का इस्लामिक समुदाय ने विरोध किया था। मुस्लिम समुदाय ने फैसले को कुरान के खिलाफ बताया था।
इस मामले को लेकर काफी विवाद हुआ था। उस वक्त वक्त सत्ता में कांग्रेस सरकार थी। सरकार ने उस वक्त Muslim Women (Protection of Rights on Divorce Act) पास किया था। इस कानून के तहत यह जरूरी किया गया था कि हर एक पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देगा। लेकिन इसमें प्रावधान था कि यह भत्ता केवल इद्दत की अवधि के दौरान ही देना होगा, इद्दत तलाक के 4 महीने 10 दिनों बाद तक ही होती है।
इसी तरह जैसे किसी बीवी का शौहर मर जाए तब भी औरत को इज्जत करनी होती है जो 4 महीने 10 दिन में पूरी होती है अब और दूसरा निकाह कर सकती है शरीयत में इतनी बनाया है एक बार उससे समझ कर तो देखिए कोई गुनाह कोई पाप कोई बदसलूकी कभी ना करेगा अगर शरीयत का पावन बन जाएगा तो.
पर्सनल लॉ के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों की लंबी सूची है। साल 1930 से लेकर अब तक महिलाओं के आंदोलन का अहम एजेंडा सभी धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के साथ भेदभाव ही रहा है। साल 2016 मार्च में केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस बी केमल पाशा ने विरोध जाहिर किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं दिया जाता। हालांकि, पर्सनल लॉ में बदलाव के खिलाफ प्रदर्शन इसमें संशोधन को मुश्किल बना देते हैं। एक्ट के मुताबिक व्यक्तिगत मामलों में सरकार को दखल नहीं देना चाहिए। इनका निपटारा कुरान और हदीस की व्याख्या के मुताबिक ही होगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ तलाक
देशभर में तीन तलाक को लेकर छिड़ी बहस के बीच अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक अनोखी पहल की है। इसके तहत अब पर्सनल लॉ के विधि विधान को लेकर फैले भ्रम को दूर करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए मस्जिदों के इमामों को एक खत भेजा गया है, जिसमें नमाजियों को निकाह, तलाक से संबंधित सही प्रावधानों की जानकारी देने की बात कही गई है।
फैले भ्रम को दूर करने की लखनऊ से शुरुआत
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के निर्देश पर लखनऊ से यह शुरुआत हुई है। इसके तहत मस्जिदों के इमामों को भेजे खत में उन्हें सलाह दी गई है कि मस्जिदों में नमाज, खासतौर पर जुमे की नमाज पढ़ने वाले नमाजियों को नमाज से पहले दी जाने वाली विशेष तकरीर (खुतबे) में निकाह, तलाक और विरासत की बाबत शरीयत और पर्सनल लॉ के सही प्रावधानों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाए, ताकि लोगों का भ्रम दूर हो।
बोर्ड इस बात को लेकर काफी गंभीर है कि देश में चंद लोग तलाक, निकाह और विरासत के बारे में शरीयत और पर्सनल लॉ के सही विधि विधान के बारे में भ्रम के शिकार हैं। इनकी गलत व्याख्या कर रहे हैं। इससे मुस्लिम औरतों और बच्चों को पारिवारिक व सामाजिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
Quran Kya Hai ||What is Quran ? & History in Hindi||Quran Kaha se aya
मुस्लिम लॉ नोट्स इन हिंदी,
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के नियम को सही ठहराया है। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकता क्योंकि ये पवित्र कुरान पर आधारित है। सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को नहीं बदला जा सकता। बोर्ड ने तीन तलाक की तरफदारी करते हुए दलील दी कि इसके न होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
अलग होने की कानूनी प्रक्रिया समय लेने वाली खर्चीली होती है। ऐसे में पत्नी से छुटकारा चाहने वाला व्यक्ति अति की स्थिति में उसकी हत्या करने जैसा गैरकानूनी तरीका अपना सकता है, ऐसे गैरकानूनी तरीके से तो बेहतर है तीन तलाक। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये दलीलें मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मामले में लंबित याचिका का जवाब दाखिल करते हुए ताजा हलफनामे में दी है। कोर्ट इस मामले में छह सितंबर को सुनवाई करेगा।
मालूम हो कि सुप्रीमकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के शादी, तलाक और गुजारे भत्ते से जुड़े अधिकारों पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने इस पर अटार्नी जनरल को नोटिस जारी किया था। बाद में इस मामले में तीन तलाक से पीड़ित कुछ महिलाओं और संस्थाओं ने भी याचिकाएं दाखिल कीं। जिस पर कोर्ट ने सरकार, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड व अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। बोर्ड का कहना है कि पत्नी से अलग होने की कानूनी प्रक्रिया समय लेने वाली होती है। इससे दोबारा शादी की संभावनाएं प्रभावित होती हैं।
शादी दो पक्षों के बीच समझौता है। जिसमें शारीरिक रूप से दोनों पक्ष बराबर नहीं होते। पुरुष शारीरिक रूप से ज्यादा ताकतवर होता है। शरीयत में पुरुष को तलाक का हक दिया गया है क्योंकि पुरुष के पास फैसला लेने की ज्यादा क्षमता होती है। वे अपनी भावनाओं को ज्यादा काबू कर सकते हैं और जल्दबाजी में फैसला नहीं करते। बोर्ड ने कहा है कि वैसे तो तीन तलाक पाप के समान है, लेकिन फिर भी ये तलाक का एक वैध और प्रभावी तरीका है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिला को भी खुला तलाक लेने का हक है।
चार शादियों को जायज ठहराते हुए बोर्ड ने कहा है कि इसकी कुरान और हदीस में इजाजत है। मुसलमान पति चार बीवियां रख सकता है, लेकिन ऐसा करना जरूरी नहीं है। ये भी कहा गया है कि बहु विवाह समाजिक और नैतिक जरूरत है। कहा गया है कि जिस चीज की कुरान और हदीस में इजाजत है उसे कोर्ट के आदेश से नहीं रोका जा सकता। बोर्ड का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल ला में महिलाओं के भरण पोषण आदि के पर्याप्त नियम कानून हैं। कोर्ट की सुनवाई का विरोध करते हुए बोर्ड का कहना कि ये मसला विधायिका द्वारा तय किए जाने का है। पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों के हनन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
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